सीने में जख्म लिए चेहरे पर मुस्कान, माथे पर पसीना करता नवनिर्माण । अपनों से दूर सपनों में खोकर गीत नया गाता भरपेट नहीं खा पाता । टूटता-बिखरता पर भय नहीं खाता वह सीधा-साधा जग मजदूर उसे कहता । वो आज भी रंक बना कितने राजा पैदा हुए पर उसने […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा