कुछ यादें,किस्से ज़ख्म समेट के, फटी उम्मीदों की चादर में लपेट के.. हर रिश्ते को अलविदा कर हम चले। घर की दर-ओ-दीवारों ने किए थे, वादे खामोश रहने के.. मेरे आँसूओं की वजह न बताने के, इन दीवारों से भी आज नागवार हो के.. हम चले..। ये कैसा आँगन, जो […]
काव्यभाषा
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