जहाँ में आई एक नन्हीं सी कली थी, सभी की नूर थी नाजों से पली थी। हंसती -खिलखिलाती सभी को प्रिय थी, गृहलक्ष्मी का नाम संग में लिए थी। घर से कदम बढ़े,कुछ आगे चली थी, लड़खड़ाते कदमों से वह गिर पड़ी थी। चलना जब सीखी स्कूल पहुँची थी, ये […]
काव्यभाषा
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