वह आदिवासी लड़की जिसे समझते हैं लोग असभ्य और समझते हैं कि उसके सर में भूसा भरा होता है, जो लीपती है रोज़ गोबर से सने हाथों से घर-आंगन।   जिसे अधिकार नहीं है चूल्हे-चौके से आगे कुछ करने का न ही देहरी लांघ लंबी घुमावदार सड़कों पर अल्हड़-सा बचपन जीने काl, जो सूरज की तपिश निगल जलाती है अपना बदन।   अथक काम करते खेतों में जिसे मजबूरी में कभी रखना पड़ता है गिरवी अपना कुंवारापन, शहरी बाबुओं की भूखी लपलपाती निगाहों के आगे सच मानिए, छूना चाहती है वह भी चमकते चाँद-सितारे, दौड़ना चाहती है वह भी खुले विस्तृत आकाश में अपने रंग-बिरंगे सपनों के पीछे।   चाहती है वह भी, चमत्कृत कर देना पूरी दुनिया को अपने हाथों से रचकर एक प्रेम कविता परंतु,क्या इस सभ्य सुसज्जित समाज में `हासिल` कर पाएगी वह ऐसी दुनिया…l   दुख-दर्द,शर्म-मायूसी से उठकर, क्या एक करनैल का फूल शोभा पा सकेगा, एक स्वस्थ सम्मानित माहौल में… या फिर दम तोड़ देगी वह भी घुटकर अपने मृत होते सपनों के साथ …ll    #डॉ. आरती कुमारी परिचय : […]

हिन्दी विरोधी ट्विटर अभियान के बाद `हमारी मेट्रो,हम नहीं चाहते हिन्दी` दो मेट्रो स्टेशनों-चिकपेट और मैजेस्टिक के हिन्दी में लिखे गए नामों को 3 जुलाई को अखबार और टेप की मदद से ढँक दिया गया है। ये मेट्रो बोर्ड कन्नड़,अंग्रेजी और हिन्दी में थे। केआरवी कार्यकर्ता प्रवीण शेट्टी ने रेस्त्रां के […]

अब्र ने चाँद की हिफ़ाजत की, चाँद ने खुद भी खूब हिम्मत कीl आज दरिया बहुत उदास लगा, एक कतरे ने फिर बग़ावत कीl वो परिंदा हवा को छेड़ गया, उसने क्या खूब ये हिमाक़त कीl वक़्त मुंसिफ़ है फ़ैसला देगा, क्या जरूरत किसी अदालत कीl धूप का दम निकल […]

विधा-पञ्चचामर छंद भजो सदा अनादि नाम शक्ति रूप वन्दना। हरो त्रिलोकनाथ क्लेश कष्ट दुःख क्रंदनाll वृषांक देह नीलकण्ठ शुभ्रता उपासना। सदा करो कृपा प्रभो करूँ अनंत अर्चनाll त्रिशूल हाथ रुद्रदेव उग्र रूप क्यों धरे। नमो नमामि शक्तिनाथ वंदना सदा करेंll बिसारि भूल भक्त देव पाप ताप हो हरें। अनंत रौद्र […]

अन्तःकरण को गहराई तक भेदती हुई चीख़..आख़िर किसकी है ? ये चीख़ है उस अस्मिता की जो बार-बार, कह रही है कि मत करो मुझे तार-तार ये चीख़ है उस बेटी की जो कर रही है एक ही प्रश्न लगातार… कि,कब तक मैं तौली जाऊँगी भावनाओं के तराज़ू में कभी माँ,कभी […]

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तुम और सिर्फ तुम मुझे मुझसे चुरा लेते हो, मेरे यार लाज़वाब हो,कमाल करते हो। पानी में घुमा देते हो उंगलियां अपनी ‘ज़ाम’ कर देते हो, मेरे यार लाज़वाब हो,कमाल करते हो। तकलुफ़्फ़ मुझे नहीं नज़रों को है मेरी, महफ़िल में भी काजल चुरा लेते हो, मेरे यार लाज़वाब हो,कमाल […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।