वह आदिवासी लड़की
जिसे समझते हैं लोग असभ्य
और समझते हैं कि
उसके सर में भूसा भरा होता है,
जो लीपती है रोज़
गोबर से सने हाथों से
घर-आंगन।
जिसे अधिकार नहीं है
चूल्हे-चौके से आगे कुछ करने का
न ही देहरी लांघ
लंबी घुमावदार सड़कों पर
अल्हड़-सा बचपन जीने काl,
जो सूरज की तपिश निगल
जलाती है अपना बदन।
अथक काम करते खेतों में
जिसे मजबूरी में कभी
रखना पड़ता है गिरवी
अपना कुंवारापन,
शहरी बाबुओं की
भूखी लपलपाती निगाहों के आगे
सच मानिए,
छूना चाहती है वह भी
चमकते चाँद-सितारे,
दौड़ना चाहती है वह भी
खुले विस्तृत आकाश में
अपने रंग-बिरंगे सपनों के पीछे।
चाहती है वह भी,
चमत्कृत कर देना पूरी दुनिया को
अपने हाथों से रचकर
एक प्रेम कविता
परंतु,क्या इस सभ्य सुसज्जित समाज में
`हासिल` कर पाएगी वह ऐसी दुनिया…l
दुख-दर्द,शर्म-मायूसी से उठकर,
क्या एक करनैल का फूल
शोभा पा सकेगा,
एक स्वस्थ सम्मानित माहौल में…
या फिर दम तोड़ देगी वह भी घुटकर
अपने मृत होते सपनों के साथ …ll
#डॉ. आरती कुमारी
परिचय : डॉ. आरती कुमारी की जन्म तिथि २५ मार्च १९७७ और जन्म स्थान गया (बिहार) हैl आप वर्तमान में आजाद कॉलोनी माड़ीपुर(मुजफ्फरपुर,बिहार) में निवासरत हैंl आपने एमए(अंग्रेजी), एमएड और पीएच-डी. की शिक्षा हासिल की हैl वर्तमान में सहायक शिक्षिका के रूप में राजकीय उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय (ब्रह्मपुरा,मुजफ्फरपुर) में कार्यरत हैंl `कैसे कह दूँ सब ठीक है` काव्य संग्रह प्रकाशित होने के साथ ही पत्रिकाओं में लेख एवं अन्य रचनाओं का प्रकाशन निरंतर जारी हैl वेब और शैक्षणिक पत्रिकाओं में भी लिखती हैंl साक्षा-काव्य-संग्रह -आज के हस्ताक्षर,ग़ज़ल सरोवर आदि भी आपके नाम हैl सम्मान के रूप में राजस्थान की राज्य इकाई द्वारा शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में ‘अनुव्रत सम्मान-२०११’ सहित ‘बिहार विकास रत्न अवार्ड- २०१२’,‘गोपी वल्लभ सहाय सम्मान-२०१३’ `साहित्य साधना सम्मान-२०१५` आदि पाए हैंl कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में पाठ करती हैंl