टूटकर फिर उगते दरख़्त। उग कर फिर टूटते दरख़्त।। हर मुश्किल से जूझते दरख़्त। आसमां को चूमते दरख़्त।। सर उठाए झूमते दरख़्त। सर झुकाए जमीं को चूमते दरख़्त।। ज़मीन को न छोड़ते दरख़्त। नहीं किसी को ढूंढते दरख़्त।। नहीं किसी को छोड़ते दरख़्त। चाहतों की छांव से लुभाते दरख़्त।। […]
dube
मो संग करी बड़ी नादानी ,न आऊँ तोरे द्वार पिया, मैं भोली सीता बन आई ,तुमने तो अविश्वास किया। पाप इंद्र का मढ़ मेरे सर ,पाषाणों-सा श्राप दिया मैं बावरी न मानी,फिर द्रौपदी का अवतार लिया, द्वापर मैं चौसर की खातिर ,लगा दांव पर मुझे दिया जितनी सीधी मैं बन जाती ,तुम बनते बेईमान पिया… मो संग करी बड़ी नादानी ,न आऊँ तोरे द्वार पिया ……..।। […]