कविता- उस रास्ते से अब कोई नहीं गुजरता

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सूर्यास्त के समय वो गुनगुनाते हुए निकल जाता था।
शायद ही ऐसा होता की उसका पूरा खोमचा बेचा न गया हो।
आते वक्त साइकल की घंटी बजाता और जाते वक्त गुनगुनाता।
उसके जाने के कुछ पल के पश्चात पशुओं का आना होता वहां।
गांव से जाता था वही एक रास्ता उस कारखाने को।
जहाँ उस गांव के हर घर से था एक व्यक्ति काम करता।
रास्ता गुजर था घनी झाड़ियों से, एक जंगल ही था वहां पे।
जैसे ही लोग निकल जाते ख़ामोशी हो जाती,
तो फिर पशु निकलते बाहर घूमने को।
कारखाने से पहले ये उनका ही तो घर था ना ?
एक दिन मगर बंद हो गया वो कारखाना।
धीरे धीरे गांव के लोग भी छोड़ चले गांव को।
बस कुछ ही घर रह गए थे वहां, जो पीढ़ियों से रहते थे।
कारखाने की वजह से ख़त्म हो गया था पानी और हरियाली भी।
अपनी खूबसूरती गँवा चुकी थी वो जगह,
गाँव वालों के लिए भी वहा कुछ नहीं था।
पशुओं को भी मानो कुछ गलत,
कुछ अलग महसूस हो रहा था।
इसीलिए इंसान नहीं और पशु भी,
उस रास्ते से अब कोई नहीं गुजरता !!!

अद्वैत अविनाश सोवले (मराठी ‘सोवळे’)

पुणे, महाराष्ट्र

परिचय-अद्वैत पुणे के रहनेवाले है । उनका बचपन विदर्भ मे गुजरा । माता पिता शिक्षा के क्षेत्र मे कार्यरत होने की वजह से बचपन से ही उन्हे पढ़ने और लिखने मे विशेष रुचि रही है । घर मे बचपन से ही किताबों का मेला रहता इसकी वजह से सिर्फ मराठी ही नहीं बल्कि हिन्दी और अंग्रेजी साहित्य मे भी उनकी रुचि बढ़ती रही । अद्वैत ने रसायनशास्त्र मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। साहित्य मे रुचि होने के कारण उन्होने अंग्रेजी साहित्य मे स्नातक की उपाधि प्राप्त की है । उनके मराठी लेख और कविताएं काफी पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी है। उनको सूचना प्रौद्योगिकी संबंधित लेख और ब्लॉग आंतरराष्ट्रीय माध्यमों मे प्रकाशित हो चुके है । पुणे मेट्रो के लिए घोष वाक्य प्रतियोगिता, विज्ञान वर्ग पहेली निर्मिति प्रतियोगिता उन्होंने जीती है। पिंपरी चिंचवड स्थित रामकृष्ण मोरे नाट्यगृह के रंगमंच के ऊपर उन्होंने लिखा हुआ सुभाषित नक्काशीत किया गया है । अद्वैत एक कुशल अनुवादक हैं और कुछ किताबों की निर्मिति में भी उन्होंने योगदान दिया हैं और दे रहे हैं । फिलहाल वो पुणे एक सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी मे संगणक प्रणाली गुणवत्ता व्यवस्थापक के पद पर कार्यरत है ।

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