इंदौर। श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर के साप्ताहिक कार्यक्रम कालजयी साहित्यकार स्मरण शृंखला में आज मंगलवार को शमशेर बहादुर सिंह के साहित्यिक कृतित्व और व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए उन्हें उनकी रचनाओं के साथ याद किया गया। 13 जनवरी, 1911 को जन्मे और 12 मई, 1993 को इस संसार से विदा लेने वाले शमशेर बहादुर ने अपने साहित्य की जीवंत डायरी छोड़ी है। साहित्य मंत्री डॉ. पद्मा सिंह ने संचालन के साथ उनके जीवन वृत्त तथा साहित्यिक अवदान पर विचार व्यक्त किये। नागार्जुन, शमशेर और त्रिलोचन की इस तिकड़ी को भला कौन भुला सकता है। उन्होंने कहा कि शमशेर जी निराला जी को अपना गुरू मानते थे। उनकी रचनाओं में प्रेम, प्रकृति, दर्शन, समाज संगीत की ध्वनियों के साथ आनंद देता है।
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने कहा के वे रूमानी कविता के कवि थे और बिंबवादी कवि के नाम से जाने जाते हैं। नकारे गये विषयों को अपने साहित्य का विषय बनाते रहे। डॉ. सुनीता फड़नीस ने कहा कि अज्ञेय जी ने उन्हें कवियों का कवि कहा था। निराला के बारे में उनकी यह कविता ’जो तुम भूल जाओ तो हम भूल जाएँ… वो खामोशियाँ बहुत नाम है, एक शमशेर भी है…’ सुनाई। श्रीमती राधिका इंगले ने कहा कि वो विशिष्ट शैली के कवि रहे। उनको समझने के लिए उनका अध्ययन करना पड़ेगा। मोहन रावल का कहना था कि शमशेर अपने समकालीन कवियों में सबसे कठिन कवि थे। वे अपने युग का प्रतिनिधित्व करते थे। उन्होंने उनकी एक रचना पढ़ के सुनाई ’मेरी बांसुरी है एक नाव की पतवार, जिसके स्वर गीले हो गए हैं…’। डॉ. अखिलेश राव ने शमशेर जी की ग़ज़लों, कविताओं, रूबाइयों और उनकी शायरी की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उनकी ये पंक्तियाँ ’तुम्हारी चोटें होंगी, हमारा सीना होगा, अब तो जीना होगा।’ डॉ. आभा होलकर ने उनकी एक प्रसिद्ध ग़ज़ल सुनाई ’वही उम्र का एक पल कोई लाये…।’ डॉ. पुष्पेन्द्र दुबे ने शमशेर जी की काव्य रचना प्रक्रिया पर विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर शमशेर जी एक प्रसिद्ध रचना ’आईना’ दूरदर्शन से प्रसारित, उन्हीें की आवाज़ में सुनाई गई। अंत में आभार प्रचारमंत्री हरेराम वाजपेयी ने व्यक्त किया। इस अवसर पर सर्वश्री अनिल भोजे, संतोष त्रिपाठी, किशोर यादव, घनश्याम यादव, छोटेलाल भारती, राजेश शर्मा, श्री बाघमारे, शांता पारेख आदि काफ़ी संख्या में साहित्यकार उपस्थित रहे।