पूछा नहीं दर्द कैसा था

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sukshama
मो संग करी बड़ी नादानी ,न आऊँ तोरे द्वार पिया,
मैं भोली सीता बन आई ,तुमने तो अविश्वास किया।
पाप इंद्र का मढ़ मेरे सर ,पाषाणों-सा श्राप दिया
मैं बावरी न मानी,फिर द्रौपदी का अवतार लिया,
द्वापर मैं चौसर की खातिर ,लगा दांव पर मुझे दिया
जितनी सीधी मैं बन जाती ,तुम बनते बेईमान पिया…
मो संग करी बड़ी नादानी ,न आऊँ तोरे द्वार पिया ……..।।

छोड़ दिया अंगना बाबुल का,पूछा नहीं दर्द कैसा था,
मैं बावरी बनी त्यागिनी,तुमने खुद का सुख देखा था।
लाख तपन दी तुमने फिर भी,मैंने सावन मान लिया था,
मैं जतलाती दर्द तपन का ,तुम बनते अनजान पिया ।
मो संग करी बड़ी नादानी ,न आऊँ तोरे द्वार पिया ……..।।

जननी बनकर आई धरा पर,अबला बनकर जीती रही,
फट गया आसमान आहों से ,फिर भी खुद ही सीती रही ।
सुख देना ही ध्येय बन गया,फटी चादरें सीती रही,
सबकी गागर भर डाली ,पर मेरी गागर रीती रही।
लगता है क्यों ना बोली,मुँह सीकर ही जीती रही,
अब न जियूं अबला बनकर ,बन जाऊँ बलवान पिया।
मो संग करी बड़ी नादानी ,न आऊँ तोरे द्वार पिया।।

                                                                                    #सुषमा दुबे

परिचय : साहित्यकार ,संपादक और समाजसेवी के तौर पर सुषमा दुबे नाम अपरिचित नहीं है। 1970 में जन्म के बाद आपने बैचलर ऑफ साइंस,बैचलर ऑफ जर्नलिज्म और डिप्लोमा इन एक्यूप्रेशर किया है। आपकी संप्रति आल इण्डिया रेडियो, इंदौर में आकस्मिक उद्घोषक,कई मासिक और त्रैमासिक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन रही है। यदि उपलब्धियां देखें तो,राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 600 से अधिक आलेखों, कहानियों,लघुकथाओं,कविताओं, व्यंग्य रचनाओं एवं सम-सामयिक विषयों पर रचनाओं का प्रकाशन है। राज्य संसाधन केन्द्र(इंदौर) से नवसाक्षरों के लिए बतौर लेखक 15 से ज्यादा पुस्तकों का प्रकाशन, राज्य संसाधन केन्द्र में बतौर संपादक/ सह-संपादक 35 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है। पुनर्लेखन एवं सम्पादन में आपको काफी अनुभव है। इंदौर में बतौर फीचर एडिटर महिला,स्वास्थ्य,सामाजिक विषयों, बाल पत्रिकाओं,सम-सामयिक विषयों,फिल्म साहित्य पर लेखन एवं सम्पादन से जुड़ी हैं। कई लेखन कार्यशालाओं में शिरकत और माध्यमिक विद्यालय में बतौर प्राचार्य 12 वर्षों का अनुभव है। आपको गहमर वेलफेयर सोसायटी (गाजीपुर) द्वारा वूमन ऑफ द इयर सम्मान एवं सोना देवी गौरव सम्मान आदि भी मिला है।

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