कभी गद्दार उन्हें कहकर गद्दारी नहीं करते, मक्कार उनको कहकर मक्कारी नहीं करते। वो नादां है इतने कि समंदर भी कह उठे, तूफान उनको कहकर तूफानी नहीं करते। हो सकता है मेरी गल्फहमी हो फिर भी, ईमान बिका कहकर बेईमानी नहीं करते॥ हम झूठी शान बताकर सम्मान नहीं करते, सौ […]
काव्यभाषा
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