`राधा रूठ गई कन्हैया से, कह डारी कितनी ही कड़वीं बतियां मनबसिया से। कहे राधा नयनन् में भर के आंसुअन की धार, कहो कन्हैया का देखो तुम इन गोपियन में, अऊर हो जात हो निढाल? जिया मोर सुलग जाए सुन तुम्हरी रसीली बतियां, ए कन्हैया! काहे तुम रस बरसाओ इन […]
धर्मदर्शन
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