हे राधा,कृष्ण पर क्रोध व्यर्थ…..

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`राधा रूठ गई कन्हैया से,
कह डारी कितनी ही कड़वीं बतियां मनबसिया से। 
कहे राधा नयनन् में भर के आंसुअन की धार,
कहो कन्हैया का देखो तुम इन गोपियन में,
अऊर हो जात हो निढाल? 
जिया मोर सुलग जाए सुन तुम्हरी रसीली बतियां,
ए कन्हैया! काहे तुम रस बरसाओ इन पर,
मैं कुढ़कर नीम्बौरी बन जाऊँ,
सही न जाए मोह से ऐसी बतियां…`
                    ऐसे संवाद राधा और कृष्ण में अवश्य होते होंगें। कृष्ण के चितचोर नयन,मोहक रूप,उस पर बांसुरी से मनमोहनी तान छेड़ने के हुनर ने पूरे ब्रज की गोपियों को मोहपाश में जकड़े रखा था।
जब कल्पना जगत के गत इतिहास में जाकर राधा-कृष्ण की अमरप्रेम कहानी के किस्से सुनती हूँ,तो राधा के प्रति आदर से भी बढ़कर यदि कोई भाव हो,तो मन में आता है। कैसे एक स्त्री होते हुए वह अपने प्रेमी कृष्ण को अन्य गोपियों के साथ छेड़छाड़ को सह पाती थीं? राधा आप शायद इसीलिए पूज्यनीय हो। कृष्ण पर क्रोध करती होंगीं,कुछ पल के लिए फिर मुहँ फुलाकर दूर भी चली जाती होंगी,पर मन में कृष्ण के प्रति अनन्त अनुराग,अथाह प्रीत उनको बहुत देर तक क्रोध की अगन में जलने नहीं देती होगी। अन्तरमन से संवाद कर राधा फिर से मुस्कुरा उठती होंगीं,यह सोचकर कि, असंख्य गोपियों के साथ छेड़छाड़,थोड़ी चुहलबाज़ी करने के बाद भी कृष्ण के एकान्त भावनात्मक पलों की संगिनी सिर्फ राधा ही हैं।
अब कृष्ण भले ही भगवान हों,परन्तु पृथ्वी पर मानव अवतार हैं,और ‘पुरूष’ हैं। पुरूष यानि संसार को चलाने वाला,चट्टान-सा सख़्त दिखने वाला,अपने अहम को अपना आभूषण मानने वाला अपने भुजबल से युद्धों पर विजय प्राप्त करने वाला। उसके शरीर के बाई तरफ भी एक धड़कता हुआ दिल होता है,जिसमें रक्त का संचार सतत् प्रवाहशील इसलिए है,ताकि वह जीवन की कठोरता को बिना टूटे सहन करता रहे। अपने कर्मक्षेत्र और अपने दायित्वों का निर्वाह कठोरता के साथ करता रहे। उसका ‘पुरूषत्व’ अंहकार से भरा होता है, वह लचीला नहीं होता। उस पर आघात् लगे तो वह तिलमिला उठता है। अपने पौरूष को बनाए रखने के लिए उसे नारी का साथ चाहिए होता है। पुरूष भी भावुक होते हैं,पर नारी की तरह अपनी भावनाओं का प्रदर्शन नहीं करते हैं। हृदय की दुनिया को समेटे रखने के लिए सांसारिक कर्तव्यों को कुशलता से निभाते जाने के लिए उन्हें शक्ति एवं ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। अब हंसी आ रही है,मुझे लिखते हुए- कि नारियां पुरूष रूपी चूल्हे का ‘ईधन’ हैं,जिसको जलाकर वे जीवन कर्तव्यों का भोजन पकाते हैं। एक ईधन समाप्त हुआ दूसरा डाला जाता है। दूसरा खत्म तीसरा,पर एक लकड़ी बहुत मोटी वाली होती है जो अंत तक साथ देती है,शेष सहयोगिनियां होती हैं।
मैं अब मन-ही-मन राधा से बोल पड़ी-राधा!कृष्ण पर क्रोध व्यर्थ था। उनको अपने चूल्हे को जलाए रखने के लिए १६१००  रानियों,८ पटरानियों को पत्नियों स्वरूप,एक राधा जैसी प्रेमिका,और मीरा जैसी साधिका की आवश्यकता पड़ी(हो सकता है और भी नाम हों,पर प्रसिद्धि इनको ही मिली)। कृष्ण का कर्मक्षेत्र भी गौरतलब है,स्वयं ही गीता में बोला है-
`यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः
अभयुत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानम् सृजाम्यहम्।`
पूरी पृथ्वी को पाप से मुक्ति और धर्म संस्थापना उनका कर्म था। इतने बड़े जीवन अभियान के लिए कई हज़ार पत्नियां,प्रेमिका,साधिका का जीवन में होना उनकी आवश्यकता थी,इसे विलासिता कहना अनुचित होगा। धर्म के विरूद्ध होगा।
यह कृष्ण का चारित्रिक दोष कतई नहीं था। इसके विपरीत जब ‘रामावतार’ पर सोचने बैठती हूँ ,तो पाती हूँ आजीवन एक स्त्रीव्रता बनकर बिचारे राम को क्या मिला? जीवनभर सीता के सानिध्य को तरसते रहे। एक पत्नी मिली उसको भी रावण हरण करके ले गया। युद्ध करके वापस लाए तो एक धोबी के कहने पर गर्भवती पत्नी को घर से बाहर भेजना पड़ा। अंत में सीता मईया ही धरती में समा गईं। राम का जीवन विलाप बनकर ही रह गया। यही कारण है कि, आज भी कृष्ण की जीवनयापन शैली व्याहारिक मानी जाती है,जबकि राम की जीवन शैली एक ‘आदर्श’ मात्र है। मतलब कि-कृष्ण जैसी जीवन शैली अपनाई तो पूरा जीवन रसपूर्ण और जीवन के सभी कर्तव्य रचनात्मकता के साथ पूरे हो जाएंगे। यदि राम जैसी जीवन शैली अपनाई तो भईया,रोते रह जाओगे और आदर्श का प्रतीक बना दिए जाओगे।
मैंने जो सोचा,जो वैचारिक मंथन किया,शायद यही मंथन राधा भी करती होंगी,जब वह कृष्ण के छलिया रूप से क्रुद्ध हो जाती रही होंगी। इस निष्कर्ष पर आकर मुस्कुरा उठती होंगीं,कृष्ण पर क्रोध व्यर्थ,कृष्ण का व्यवहार नियति निर्धारित। कृष्ण छलिया नहीं,कृष्ण सच्चे पुरूष जिसे अपने विशाल जीवन लक्ष्य को पूरा करने के लिए ऊर्जा का एक विशाल भंडार चाहिए। इसके लिए उन्हें नारियों के विशाल सानिध्य की दरकार थी। हर एक की अलग विशिष्टता,अलग प्रकार की ऊर्जा देती है,परन्तु राधा,रूक्मणी,मीरा में विशिष्टताओं का बाहुल्य था,इसलिए वह उनको अधिक प्रिय थीं। उनके साथ उनका नाम जुड़ गया।
इसलिए हे राधा,तुम रूठियो मत,यदि कृष्णयुग फिर से आए। जो कतई रूठ भी जइयो तो खुद ही मान जइयो,अपने संवरियां से लिपट जइयो और कहिओ-कन्हैया! मोरे संइय्या जग घूमया थारे जैसा न कोईll 
`क्यों रूठ रही राधे तू कन्हैया से,
मुरलीधारी वह बनवारी
कर्मक्षेत्र को जुझारी,
बात मोरी मान
हिया से लिपट,
हे राधा! कृष्ण पर क्रोध व्यर्थll 

                                                                                                        #लिली मित्रा

परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं। 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।