जब शाम का सूरज, टाँक रहा होता है पश्चिम में चित्र खूब धूसर, चटक लाल रंग से.. जब धूप थके पाँव लौटने लगती है घर को, तब आकाश थोड़ा नरम होकर फैला लेता है अपनी बाँहें। तब धुंधलका उसकी बाँहों से छूटकर, फैल जाता है पूरी धरती पर, तब हवा […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा
माँ के आंचल में लेकर किलकारी, बोलना सीखते अपनी मातृभाषा। जिसमें बुने जाते हैं मीठे-मीठे रिश्ते, पाकर जिसे पूरी हो हर अभिलाषा। बरगद-सी,अमराई-सी है मातृभाषा, फैली है हमारे अंदर इसकी आभा। समाज,परिवार,देश की मजबूती, गठबंधन बनाए रखती है मातृभाषा। बहुत दुखती है,हिन्दी की अंतरात्मा, जब हम शान से बोलते अंग्रेजी […]