‘बहकना चाहता है’

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shashank-sharma1

चंचल चित्त,चितेरा होना चाहता है,
मन मस्त,मगन मुग्ध होना चाहता है।

फ़ितरत फ़िसलने की है इस दिल की,
बावरा बस बरबस,बहकना चाहता है।

दिल हरदम सच्चा होना चाहता है,
फिर एक बार बच्चा होना चाहता है।

ऊपर से कितना भी शरीफ़ जान पड़े,
अंतर्मन से बस चहकना चाहता है।

बंद कर लो इसे,समझ की बोतलों में,
महफ़िलों में इत्र-सा महकना चाहता है।

पहरे लगा लो भले लाख इस पर,
दीवाना दिल दर-दर भटकना चाहता है।

#शशांक दुबे

लेखक परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश) में पदस्थ हैं| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय हैं |

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