आज मैंने फिर एक पौधा लगाया,
पर मुझे आज एक अलग ही मजा आया,
पत्तों ने किया जैसे हिल कर अभिनन्दन,
याद दिला रहें हों, जो है हमारा अटूट बंधन।
कुछ दिन तो, पौधा जैसे कहे , रखो मेरा ख्याल,
फिर सारी उम्र रखूंगा, मैं तुम्हें संभाल,
दूंगा मै तुम्हें आक्सीजन भरपूर,
मेरी छाया भी फैलेगी दूर-दूर।
नमी बचा कर रखूंगा,
तापमान भी होगा कम,
फल, फूल,लकड़ी सब ले लेना,
नहीं निकलेगा मेरा दम।
जो देने को तत्पर है, सब कुछ अपना,
उस पौधे को देख मेरे मन ने किया एक सवाल,
ये कैसी नासमझी इंसान की,
उसको ही ना रख पाया संभाल।
#सुनीता बहल
नाम- सुनीता बहल
राज्य – हरियाणा
शहर- रोहतक
शिक्षा- एम.एस.सी, एम.एड
कार्यक्षेत्र- साइंस अध्यापिका
विधा- कविता, लघुकथा
प्रकाशन – हरिगंधा, साहित्य अमृत, पंजाब सौरभ, प्रयास पत्रिका (कनाडा), भारत दर्शन (न्यूजीलैंड),
समाचार पत्र रोहतक भास्कर , हरिभूमि, जागरण
सम्मान- साहित्य- सोम सम्मान-पत्र (शैली साहित्यिक मंच), रोहतक
काव्य रंगोली मातृत्व ममता सम्मान- 2018
लेखन का उद्देश्य- हिंदी का प्रचार प्रसार, अपनी सोच लोगों तक पहुंचाना, बच्चों के लिए मनोरंजक साहित्य उपलब्ध करवाना
So beautiful poem…
Also inspirational too…