अरे नितिन की माँ देखो,मैंने नितिन व उसकी पत्नी दोनों का बीमा करवा दिया था और ६०००० हजार रुपए भी मैंने भर दिए थे,पर उसने तो पैसे निकालकर पॉलिसी ही खत्म कर दी ।
अब आपको कैसा दुःख हो रहा है। अगर मैं भी सौम्या का बीमा करवा देती और वह जरूरत पड़ने पर पैसे लेकर पॉलिसी खत्म कर देता तो मुझे भी दुख होता। आपने उससे पूछा नहीं कि उसने पॉलिसी क्यों खत्म कर दी ?
पूछा था,कहने लगा कि मुझे पैसों की जरुरत थी इसलिए पॉलिसी खत्म कर दी। क्या करें उसका काम कभी भी ठीक से नहीं चलता है ?
इसीलिए तो मैं नौकरी के पक्ष में थी जब देखो तब कहता रहता है व्यापार में घाटा होता है तो करता ही क्यों है ? और सीमा को देखो,उसका दिमाग तो हमेशा आसमान में ही रहता है। जरा-सा कुछ बोलो तो बीच में बोलने लगती है,भाषण देने लगती है। अपनी चीजों का खूब ध्यान रखती है,जबकि सब कुछ उसी का है। आज स्वाति तो अपने घर चली गई,मुश्किल से साल में चार-पांच दिन के लिए आती है तो भी ध्यान रखेगी। कहीं उसको कुछ ज्यादा न दे दूँ,मतलब हमें अपनी बेटी को अपना ही पैसा देने में डर लगता है। उसके पैसे की तो बिसात ही क्या है। उसके बच्चों पर खर्च करते हैं तब तक तो खुश है,लेकिन बेटी को कुछ करें तो बस…।
दोनों के लिए चाहे कितना भी करें,लेकिन तब भी कोई एहसान नहीं मानते हैं। स्वाति को कुछ भी दें तो गदगद होकर ले जाती हैं। बेटा और बेटी में यही तो अन्तर है…।
#आशा जाकड़
परिचय: लेखिका आशा जाकड़ शिकोहाबाद से ताल्लुक रखती हैं और कार्यक्षेत्र इन्दौर(म.प्र.)है। बतौर लेखिका आपको प्रादेशिक सरल अलंकरण,माहेश्वरी सम्मान रंजन कलश सहित साहित्य मणि श्री(बालाघाट),कृति कुसुम सम्मान इन्दौर,शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान(उज्जैन),श्री महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान(शिलांग) और साहित्य रत्न सम्मान(जबलपुर)आदि मिले हैं। जन्म१९५१ में शिकोहाबाद (यू.पी.)में हुआ और एमए (समाजशास्त्र,हिन्दी)सहित बीएड भी किया है। 28 वर्ष तक इन्दौर में आपने अध्यापन कराया है। सेवानिवृत्ति के बाद काव्य संग्रह ‘राष्ट्र को नमन’, कहानी संग्रह ‘अनुत्तरित प्रश्न’ और ‘नए पंखों की उड़ान’ आपके नाम है।
बचपन से ही गीत,कविता,नाटक, कहानियां,गजल आदि के लेखन में आप सक्रिय हैं तो,काव्य गोष्ठियों और आकाशवाणी से भी पाठ करती हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हैं।