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झुर्रियों को केवल चेहरे की
लकीरें ना समझें,
अगर काबिल हो तो
उनकी काबिलियत
को समझें।
जवानी में तो ये तुमसे
भी सजीले नौजवान थे,
जब चलते थे सीना तान के
तो लगते पहलवान थे।
झुर्रियां अनुभवों की झांकी हैं,
इसे सहेज के रखा जिसने
दुनियां जहान की खुशियां,
घर में पाई हैं उसने।
झुर्रियों से भरे चेहरे को,
को केवल चेहरा ना समझें
गर घर में हैं ऐसे बुजुर्ग,
तो घर की शान समझें।
कुछ काम करो ऐसे कि,
इस उम्र तक पहुंचो
पहुंच ही गए अगर तो
आनन्द ही आनन्द समझो॥
#सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’
परिचय: सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’ का जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं जिनकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न २०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान,विभिन्न कैसेट्स में गीत रिकॉर्ड होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं।
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Fri Feb 2 , 2018
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