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हाथ तिरंगा गहने वाला दीप बुझ गया जलते-जलते।
वंदे मातरम् के उत्तर में कत्ल हो गया चलते-चलते।
राष्ट्र चेतना की वेदी पर शीश चढ़ा एक और तरुण-
दर्पण उसने दिखा दिया है राजतंत्र को हँसते-हँसते॥
राष्ट्रभक्ति की बेल छजी जब सत्ता चौबारों में।
वंदेमातरम् के रखवाले कटते क्यों बाजारों में।
इंद्रप्रस्थ से अवधपुरी तक राष्ट्रवाद की जै-जै जब-
हाथ तिरंगा लेने वाले मरते क्यों गलियारों में॥
#अनुपम कुमार सिंह ‘अनुपम आलोक’
परिचय : साहित्य सृजन व पत्रकारिता में बेहद रुचि रखने वाले अनुपम कुमार सिंह यानि ‘अनुपम आलोक’ इस धरती पर १९६१ में आए हैं। जनपद उन्नाव (उ.प्र.)के मो0 चौधराना निवासी श्री सिंह ने रेफ्रीजेशन टेक्नालाजी में डिप्लोमा की शिक्षा ली है।
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