निर्भया और न्याय

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16 दिसम्बर 2012 को भारत की राजधानी दिल्ली की सुनसान सड़क पर हुए 23 साल की ज्योति के साथ हुए उस हादसे का जिक्र अगर आज भी कभी होता है तो लबों पर शिकायत, दिल में दर्द, मन में डर और आँखों में अश्क होता है ।

वो रात भयानक, गम्भिर, डरावनी और हवस का प्रतीक थी, वो रात मानवता और इन्सानीयत के विपरीत थी, वो रात आज भी भारत की काली रातों में से एक है, वो रात आज भी दुराचारियों के दुराचरण का गिनौना प्रतीक है ।

इस हादसे ने ज्योति को निर्भया बना दिया, इस हादसे ने तमाम देशवासियों को रुला दिया, इस हादसे ने उन 6 नर भेड़ियों का मुखोटा हटा दिया, इस हादसे ने देश की बेटियों की सुरक्षा पर प्रश्न चिह्न लगा दिया ।

चाहे कितनी ही ऊँगलियाँ क्यों न उठी हो,
चाहे कितने ही लांछन क्यों न लगे हो,
चाहे विरोधियों ने काॅर्ट में कितनी ही दलिलें क्यों न रखी हो,
चाहे उन प्रत्यक्ष सबूतों को मिटाने के लिए कितनी ही ज्द्दोजहद क्यों न की हो,
लेकिन आखिरकार इस सच-झूठ की लड़ाई में सच जीता,
उस माँ का विश्वास जीता,
उस पिता का दृढ़ संकल्प जीता,
देश का न्याय तंत्र जीता,
और अंत में न्याय पर भरोसा करने वाला हर एक नागरिक जीता ।

सात साल लग गये निर्भया को न्याय दिलाने की लड़ाई में,
सात साल लग गये उन दोषियों को फाँसी पर चढ़ाने की लड़ाई में पर उस माँ ने अपनी हिम्मत न हारी, उस पिता ने अपनी हिम्मत न हारी जिसका कारण सिर्फ इतना था कि इन झूठी दलिलों के आगे फिर दबकर न रह जाए किसी बेटी की बेबसी और लाचारी, कारण सिर्फ इतना था कि उनकी बेटी जिस दर्द, जिस पीड़ा से गुजरी उससे कोई और बेटी न गुजरे हमारी ।

     'जय हिन्द! जय भारत!'

सुहानी जैन
नाथद्वारा (राजस्थान)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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