मेरा रोबोट

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kumari archana
मशीनी सभ्यता का नायाब़ तोहफ़ा,
असंवेदनशील जीव न होकर
स्वचालित,परन्तु बनने के बाद
कभी भी अनियंत्रित,
दिल से नहीं अपितु दिमाग से
चलता और रूकता हो।
काश् तुम भी मानव नहीं,
कोई ‘रोबोट’ होते!
कम-से-कम साथ तुम्हारा रहता,
जब चाहती पास लाकर
प्यार करना-प्यार करती,
जब चाहती नफ़रत करना तो
दूर कर तुमको सजा देती,
कोई फर्क़ न तुम पर होता
न ही मेरे चेहरे पे शिकन।
जानती हूँ तुम मशीन हो,
मेरे हाथों के खिलौना मात्र
मिट्टी से बने सजीव नहीं,
जो मुझसे जी भर जाने पर
तलाशे नई मिट्टी की देह।
मूर्तिकार बन मेरी देह तराशते,
तो कभी चित्रकार बन उभारते
कभी कांसे में मुझे ढाल देते तो,
कभी कवि बन कविता बना देते
तो गायक बन गज़ल़ गा देते,
कभी अपने मनोकूल मुझे अनुकूलित
जैसे मैं कोई तापमान होऊँ।
कभी मानव प्रतिरुप तो कभी,
‘रोबोट’ को तुमने बनाया
मानव के विकल्प में रूप में,
आधुनिक युग के वैज्ञानिक बने
पर मैं ‘मेरा रोबोट’ बनना चाहती हूँ,
तुम्हारी अनुपस्थिति के विकल्प में।
जो इस जीवन में सदा साथ रहे,
और मेरे मर जाने के बाद भी
एकनिष्ठ का एकनिष्ठ बना रहे,
जैसे मैं तुम्हारे लिए रही
मशीन है वो मैंने उसे बनाया,
मेरे आदेशों का गुलाम है
मेरा कहा तो मानेगा ही,
समझ रहे ना तुम मेरे इशारे॥
           #कुमारी अर्चना

परिचय: कुमारी अर्चना वर्तमान में राजनीतिक शास्त्र में शोधार्थी है। साथ ही लेखन जारी है यानि विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में निरंतर लिखती हैं। आप बिहार के जिला-पूर्णियाँ ( हरिश्चन्द्रपुर) की निवासी हैं।

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