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छल रही है जिंदगी,
चल रही है जिंदगी।
है कभी मिठास तो,
है कभी खटास भी।
महफिलें सजी हुई,
है कभी वनवास भी॥
ढल रही है जिंदगी,
चल रही है जिंदगी।
उम्मीदों के तूफान है,
डूब का अनुमान है।
हौंसलों की नाव पर,
किनारों का अरमान है॥
संभल रही है जिंदगी,
चल रही है जिंदगी।
तम घनेरा हो रहा,
नफरतों को बो रहा।
राजा जी है नींद में
लोकतंत्र रो रहा॥
खल रही है जिंदगी,
चल रही है जिंदगी।
#नवीन जैन ‘अकेला’
परिचय : नवीन कुमार जैन का साहित्यिक उपनाम-अकेला है। जन्मतिथि-१९ अप्रैल १९६९ एवं जन्म स्थान-भोपाल है। आप वर्तमान में मध्यप्रदेश के मंडला जिले में ग्राम पंचायत-देवदरा में बसे हुए हैं।शिक्षा-उच्चतर विद्यालय और आयुर्वेद रत्न(वैद्य विशारद)है। पेशे से व्यवसाई श्री जैन सामाजिक क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं के कार्यक्रमों में भागीदारी रखते हैं। आपकी विधा-गीत,ग़ज़ल,दोहा, लघुकथा और हाईकु है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहा है। नेहरु युवा केन्द्र द्वारा ‘श्रेष्ठ युवा’ सम्मान एंव विभिन्न साहित्य संस्थाओं द्वारा भी आप सम्मानित किए गए हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-आत्मसंतोष एंव जागरुकता
फैलाना है।
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Tue Jan 16 , 2018
मेरा देश रो रहा है, कैसे इसे आज़ाद मानूं ? ये जकड़ा है सम्प्रदायिक ताकतों से, कैसे इसे आज़ाद मानूं ? ये पटा पड़ा है, विदेशी कंपनियों से कैसे इसे आज़ाद मानूं ? महिला जहाँ सुरक्षित नहीं, कैसे इसे आज़ाद मानूं ? जिस देश में बच्चियों को एक सांस नसीब […]