Read Time39 Second

मैं निडर उद्दंडतापूर्वक लिख रहा हूँ।
तो ही कौडियों के भाव बिक रहा हूँ।।
तुम्हारे ठुकराने व दुत्कारने पर देखो।
मैं तो सर्वश्रेष्ठ भी अत्याधिक रहा हूँ।।
अंतर कहां पड़ता है मूर्ख नासमझो।
मैं राष्ट्रभक्त और अध्यात्मिक रहा हूँ।।
भले बेचे समाचारपत्र मैंने सड़क पर।
फिर भी देखो सम्पन्न आर्थिक रहा हूँ।।
मिट्टी के माधवो मिट्टी को पहचानों।
जिसकी खुश्बु का ओलंपिक रहा हूँ।।
इंदु भूषण बाली
Post Views:
512