खुद के साथ अपनी
हथेलियों को बड़े गौर
से देखती हूँl
आड़ी-तिरछी इन लकीरों,
में न जाने क्या खोजती हूँl
सिकोड़कर कुछ गाढ़ी,
खिंची लकीरों की गहराई
नापती हूँl
पता नहीं,इन गहराइयों में,
खुद को कहाँ तक डूबा
देखती हूँ ??
सोचती हूँ,क्या सच में मेरी,
ज़िन्दगी इन रेखाओं से
आकार पाती है,
मेरी मुट्ठी में रहकर
भी मेरी किस्मत,
मुझे नचाती हैll
पता चल जाए कहाँ ?
तो मिलाऊँ के,जो खिंचा था,
जी आई हूँ वहीl
अजब दस्तकारी है
खुदा की,
इंसा की जिन्दगी
उसकी ही
हथेलियों में पहेलियों-सी
कुंजी,कर्मों के गहरे
समन्दर में गिरा दीl
किसी तिलिस्मी कहानी
की तरह,
हर रोज़ नए मक़ामों
से गुज़रती हूँ,
एक से उबर दूसरे में
जा फंसती हूँl
कभी दो घड़ी मिली
फुरसत तो बैठकर,
हथेलियां तकती हूँ
इन उलझी लकीरों
को समझने की,
एक नाकाम कोशिशें
करती हूँll
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।