हाथों की लकीरें

0 0
Read Time2 Minute, 4 Second

mitra-300x186

जब भी बैठती हूँ,
खुद के साथ अपनी
हथेलियों को बड़े गौर
से देखती हूँl

आड़ी-तिरछी इन लकीरों,
में न जाने क्या खोजती हूँl

सिकोड़कर कुछ गाढ़ी,
खिंची लकीरों की गहराई
नापती हूँl
पता नहीं,इन गहराइयों में,
खुद को कहाँ तक डूबा
देखती हूँ ??

सोचती हूँ,क्या सच में मेरी,
ज़िन्दगी इन रेखाओं से
आकार पाती है,
मेरी मुट्ठी में रहकर
भी मेरी किस्मत,
मुझे नचाती हैll 

जो गुज़र गया वह भी तो,
दर्ज होगा यहीं,
पता चल जाए कहाँ ?
तो मिलाऊँ के,जो खिंचा था,
जी आई हूँ वहीl

अजब दस्तकारी है
खुदा की,
इंसा की जिन्दगी
उसकी ही
हथेलियों में पहेलियों-सी 

सजा दी,
कुंजी,कर्मों के गहरे
समन्दर में गिरा दीl

किसी तिलिस्मी कहानी
की तरह,
हर रोज़ नए मक़ामों
से गुज़रती हूँ,
एक से उबर दूसरे में
जा फंसती हूँl

कभी दो घड़ी मिली
फुरसत तो बैठकर,
हथेलियां तकती हूँ
इन उलझी लकीरों
को समझने की,
एक नाकाम कोशिशें
करती हूँll  

          #लिली मित्रा

परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं। 

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

निर्झर

Sat Jan 13 , 2018
मैं बहती कलरव करती, टिमटिमाती बूंदों के साथ। बहाकर लाती पहाड़ी कहानी, युगों-युगों से लेकर साथ। हरे-भरे पहाड़ों के, हृदय चीरकर लाती हूँ, गुनगुनाती हूँ जनजाति के दुख-सुखों का संगीत। पत्थरों पर टकराकर भी, चम-चम नाचती पावन मीठा जल लेकर, सबको पिलाती। मेरी ही स्पर्श से धरती ने हरियाली, चादर […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।