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जिंदगी के नए पुराने रंगों से
खेल रही हूँ,
जाने क्या खुद में,क्या ढूंढ रही हूँ।
चारों तरफ फैला है बेबस अंधेरा…
क्यों मैं अपनी आंखें मूंद रही हूँ।
किसे दोष दें हम इस दुनिया में…,
इस हालत की जिम्मेदार
मैं खुद रही हूँ
वक़्त ने तो आगाह किया था
हमें कई बार,
पर मैं सबसे अनजान
आत्ममुग्ध रही हूँ।
नेहा के नेह अब बरसें भी तो भला कैसे…
अश्क आंखों में अपनी जगह ढूंढ रहे हैं।
अश्कों के लिए आंखों में जगह ढूंढ रही हूँ॥
#नेहा लिम्बोदिया
परिचय : इंदौर निवासी नेहा लिम्बोदिया की शिक्षा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में हुई है और ये शौक से लम्बे समय से लेखन में लगी हैं। कविताएँ लिखना इनका हुनर है,इसलिए जनवादी लेखक संघ से जुड़कर सचिव की जिम्मेदारी निभा रही हैं। इनकी अभिनय में विशेष रुचि है तो,थिएटर भी करती रहती हैं।
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क्या ढूढ rahi hai नेहा अश्क को बहने की जगह चाहिए बहूत अच्छा लगा बधाई