गगन को छूने वाले भाव सारी मंडियों के हैं,
कहीं से बूंद भर जल को खुले मुख सीपियों के हैं।
हमेशा टूट जाते हैं जरा-सा दाब पड़ते ही,
यहां जितने भी एलबम हैं सभी बस दफ्तियों के हैं।
स्वयं अपनी ही बातों से मुकर जाता है कोई भी,
कहूं क्या इस जमाने में कई मुख व्यक्तियों के हैं।
हकीकत में जहां देखो वहीं पर चल रहा पैसा,
गरीबों के लिए सचमुच ये दिन दुश्वारियों के हैं।
वजन ढोतीं है जो दिन भर कहीं अपने से भी ज्यादा,
बड़े मजबूत अपने में इरादे चीटियों के हैं।
बहुत भूखे हैं दुनिया में किसी के काम आएंगे,
इन्हें मत भूलकर फेंको ये टुकड़े रोटियों के हैं।
किसी पर केस चोरी का,किसी पर जुर्म हत्या का,
मुकदमा चल रहा सब पर ये किस्से मंत्रियों के हैं।
कगारों पर हैं गिरने की जो अक्सर सजर की डालें,
उन्हीं डालों पे ही ‘नीरव’ घरौंदे पंछियों के हैं॥
#डॉ. कृष्ण कुमार तिवारी ‘नीरव’