Read Time1 Minute, 25 Second
उम्मीदों और आशाओं का
महल तैयार किया,
पलकों पर अपनी सदैव
नाज किया,
लहलहा रही थी खुशियाँ
इर्द-गिर्द
अम्बर,गगन सब टकटकी
लगाये देख रहे थे,
सपनों की उड़ान हौंसलों
में पंख लगा रही थी,
हर सपना हर अपना हर जज्बा
सब अपने हो रहे थे,
जलाए थे जिसने उम्मीदों के दीए
खड़े किए थे आशाओं के महल,
…अफसोस …..
दरम्यान हमारे वो नहीं रहा
बड़ी एहसान परस्त है जिन्दगी,
रुकना जानती नहीं है
कभी किसी के लिए थमती नहीं!
अनवरत चलना जानती है…॥
#शालिनी साहू
परिचय : शालिनी साहू इस दुनिया में १५अगस्त १९९२ को आई हैं और उ.प्र. के ऊँचाहार(जिला रायबरेली)में रहती है। एमए(हिन्दी साहित्य और शिक्षाशास्त्र)के साथ ही नेट, बी.एड एवं शोध कार्य जारी है। बतौर शोधार्थी भी प्रकाशित साहित्य-‘उड़ना सिखा गया’,’तमाम यादें’आपकी उपलब्धि है। इंदिरा गांधी भाषा सम्मान आपको पुरस्कार मिला है तो,हिन्दी साहित्य में कानपुर विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान पाया है। आपको कविताएँ लिखना बहुत पसंद है।
Post Views:
499
Sat Dec 9 , 2017
रामभरोसे और नयनसुख शहर के दो बहुत ही प्रतिष्ठित परिवारों के मुखिया थे। दोनों परिवारों के बीच दांत-काटी रोटी जैसे मधुर संबंध वर्षों से थे। समय चक्र अपने दायित्व का भली-भांति निर्वाह कर रहा था। कुछ समयान्तर के बाद रामभरोसे की पुत्री ने स्नातक और नयन सुख के पुत्र ने […]