तुम

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ganesh madulkar
(जल हरण घनाक्षरी)
जीवन की अंतिम सांसें गिनते हुए,
किसी रोगी को हर मर्ज दवाई लगती हो तुम..
मेरे ख्वाबों-ख्याल की रानी कैसे बताऊँ तुम्हें,
मुझे तो प्रेम की परछाई लगती हो तुम।
बसंत की बहार,सावन की फुहार-सी हो,
मंद-मंद बहती पुरवाई लगती हो तुम…
तुमको मैंने क्या सोचा,और तुम क्या निकली,
बेवफा हो और बेवफाई लगती हो तुम॥

                                                               #गणेश मादुलकर

परिचय: गणेश मादुलकर का साहित्यिक उपनाम-मुसाफ़िर है। इनकी जन्मतिथि -५ सितम्बर १९९७ तथा जन्म स्थान-गांव ग्राम बम्हनगावं(मध्यप्रदेश)है। शहर हरदा में बसे हुए गणेश मादुलकर अभी विद्यार्थी काल में हैं। यह किसी विशेष विधा की अपेक्षा सब लिखते हैं। आपके दो प्रकाशन आ चुके हैं,जिसमें एक साझा संग्रह है। इनके लेखन का उद्देश्य सामाजिक रूढ़िवादिता पर कटाक्ष प्रहार के साथ ही प्रकृति चित्रण,देश-काल, वातावरण एवं अन्य विषय पर भी लेखन जारी है।

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