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वृद्धाआश्रम में रहकर भी,
माँ संतान सप्तमी रहती है।
हो जाए न बच्चे का अनिष्ट,
यही सोच प्रभु को भजती है॥
दुनिया का उसे कोई मोह नहीं,
पर उससे वो मोह करती है।
आशा का दीप जलाकर,
देहरी पर बैठा करती है॥
उसकी गलतियों पर भी,
वो किस्मत को दोष ही देती है।
बच्चा तो मेरा बड़ा ही प्यारा,
कहकर वो हँस देती है॥
उसके लिए खुशिया माँग,
वो दुनिया से विदा ले लेती है।
अपना सर्वस्व न्यौछावर कर,
वह कभी किसी से न कुछ लेती है॥
ऐसी दुनिया में केवल माँ ही,
होती है,भगवान रूप में आती है,
माँ तुझे प्रणाम॥
#मनोरमा संजय रतले
परिचय : मनोरमा संजय रतले की जन्मतिथि- १७ मार्च १९७६ और जन्म स्थान-कटनी(मध्यप्रदेश)है। आपने अर्थशास्त्र में एमए की शिक्षा प्राप्त की है। कार्यक्षेत्र-समाजसेवा है। आपका निवास मध्यप्रदेश के दमोह में ही है।सामाजिक क्षेत्र में सेवा के लिए दमोह में कुछ समितियों से सदस्य के रुप में जुड़ी हुई हैं,तो कुछ की पूर्व अध्यक्ष हैं। लेखन में आपकी विधा-कविता,लघुकथा,लेख तथा मुक्त गीत है। आपकॊ हिन्दी लेखिका संघ दमोह से साहित्य श्री सम्मान,छत्तीसगढ़ से महिमा साहित्य भूषण सम्मान,छत्तीसगढ़ से प्रेरणा साहित्य रत्न सम्मान सहित भोपाल से
शब्द शक्ति सम्मान एवं आयरन लेडी ऑफ दमोह से भी सम्मानित किया गया है। विविध पत्रों में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। श्रीमती रतले के लेखन का उद्देश्य-शौक,समाज के लिए कुछ करना और विचारों की क्रांति लाना है।
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