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गीतांजलि और सरिता दो ऐसी सहेलियां थी,जो एक दूजे के बिन नहीं रह सकती थी ।
दोनों के स्वभाव बिल्कुल विपरीत थे ।
गीतांजलि सरल और शांत स्वभाव की तो सरिता घमंडी प्रवृत्ति की थी ।
दोनों के विचारों में बहुत अंतर था ।
गीतांजलि, मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी थी तो सरिता धनी परिवार की थी ।
गीतांजलि ने कहा – सरिता तुम हर पल इतना घमंड क्यों करती हो ? ईश्वर ने हमें इतना अमूल्य जीवन प्रदान किया ।
सरिता ने कहा – गीत, तुम्हारे आदर्शों से दुनिया नहीं चलती,जीवन के लिए धन सर्वोपरि है । मुझे मेरे रूप-रंग और देह बहुत प्यारी है ।
गीतांजलि ने कहा – नश्वर शरीर ( देह) का कैसा अभिमान ? शरीर नाश्वान है , विचार नहीं ।
सरिता ने कहा – मैंने अपनी देह को बहुत मेंटेन किया लेकिन तुम ये सब नहीं समझोगी ।
गीतांजलि ने कहा – समय रहते संभल जाओ ।
एक दिन सरिता और गीतांजलि, कालेज से (स्कूटी से )घर लौट रही थी ।
सरिता स्कूटी चला रही थी, गीतांजलि पीछे बैठी थी ।
तभी अचानक सामने से दौड़ता हुआ कुत्ता गाड़ी के सामने आ गया । उसे बचाने के प्रयास में संतुलन बिगड़ा और दुर्घटना हो गई ।
गीतांजलि को मामूली-सी खरोंच आयी ।
सरिता चेहरे के बल जमीन पर गिरी और उसके चेहरे पर पत्थर घुस गये ।
भीड़ ने दोनों को अस्पताल में दाखिल कराया ।
सरिता का चेहरा बहुत बुरी तरह से बिगड़ चुका था ।घाव इतने थे कि पट्टियां लगानी पड़ी ।
समय बीतता गया……
सरिता के चेहरे के घाव तो भर गये परंतु जिस देह , जिस सुंदर चेहरे पर उसे अभिमान था , वो सदा के लिए कुरूप हो गया था ।
शिक्षा – दुनिया में देह का मोह करने वाला महामूर्ख है ।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए किया हुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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