बिखर जाने दो

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ranu dhanoriya
दोष नजरों को न दो,के शीशा टूट जाएगा,
बिखरी जुल्फों को जरा संवर जाने दो।
न सोच के अंजाम ए मोहब्बत क्या होगा,
इश्क दरिया है आंसूओं को उतर जाने दो।
मत उदास हो के तेरा भी सवेरा आएगा,
बुरा बक्त है,हंसकर इसे गुजर जाने दो।
कल तक जो ये कहते थे हमें अपना,
उनका वक्त है आज,जुबां से मुकर जाने दो।
चटकते कांच में सूरत निहारना नहीं अच्छा,
क़ैद शरमो-हया को छोड़ तरबतर जाने दो।
लिखा था हाल-ए-दिल सनम के वास्ते,
चिट्ठी कश्मकश की चांद को बेखबर जाने दो।
अंधेरों में मंजिल तक पहुंचने के लिए,
मत फेंक कांटे रास्तों पे रहगुजर जाने दो।
आपस में चंद झूले,यही बस बात करते हैं,
लचकती डाल की टूटी हुई कमर जाने दो।
सनम के बाजूओं में सर रख के कह गई,
कबिल न था मेरे वो, हमसफर जाने दो।
ताश के पत्तों में था चिड़िया का घोंसला,
संग ले गया क्यों गैर का यूं घर जाने दो।
सदियों से दफन हैं जहां शमशान में लाशें,
कब्रें खोद गुनाहों के फन उधर जाने दो।
कहते थे के खुले आसमां में उड़ना है चाहते,
बेबस पंखों को अपने परिंदे कुतर जाने दो।
वो दिन दूर नहीं, एहसास तुझे होगा यकीनन,
एक बार उनकी बस्तियों में कहर जाने दो।
पलकें ताक़ती रहती थी रास्ता जिसका,
उन्हीं पलकों में छुपा था कत्ल-ए-जहर जाने दो।
जिस गोद में आसमां अपना रखा था हमने,
उसी की गोद में कलम हमारा सर जाने दो।
न पूछ तू अटकी हुई सांसों में दबी आह,
मेरे जिस्म में थमती नहीं वो बहर जाने दो।
जिसकी गलियों में मैंने,कभी खेल था खेला,
नहीं है तपतपाती धूप में अब दोपहर जाने दो।
जिसकी खातिर मैं निकला था वो इबादत करने,
कयामत की वजह न छोड़ ये शहर जाने दो।
जिसे मिलकर बनाया था वो खेलता आंगन,
समंदर की बहाती रेत पर वो लहर जाने दो।
निगाहें मांगती रही उनसे दो बूंद-सा पानी,
उनके रुख पे मेरे दर्द थे बेअसर जाने दो।
दुआ करता हूं,तेरे हिस्से कभी भी गम न आए,
मैं जा रहा हूं छोड़ खुदा के घर जाने दो।
आंखों में न हो आंसू,तो कोई गम नहीं होगा,
मेरे खातिर तो रोते थे ये शामो-शहर जाने दो।
होंठों की बड़ी ठंडक-सी,मैं महसूस कर बैठा,
दिल की बात को अब दिल में ही ठहर जाने दो।
कतिल थी वही नजरें,जिनका दीदार करता था,
कत्ल की रात नशीले जाम में उतर जाने दो।
कर गए हो हमें तन्हां की बस्तियों में अकेले,
जिसकी जो भी मर्जी हो,उसे वो कर जाने दो।
देखते हैं के कब तलक वो इम्तहान लेंगे,
हमारे इश्क़ की हद को,हद से गुजर जाने दो।
जनाजा उठ चुका,जब किसी ने बेवफाई की,
अब रुह को नहीं है मौत का वो डर जाने दो।
नहीं पूछा दर्द-ए-दिल,ऐसी बेरुखी बरती,
वो मर रहा है तो,उसे अब मर जाने दो।
समेटे हुए आसमां मुट्ठी में रखा था,
अब किसी गैर के दामन में उसे बिखर जाने दो।
                                                                        #रानू धनौरिया
परिचय : रानू धनौरिया की पहचान युवा कवियित्री की बन रही है। १९९७ में जन्मीं रानू का जन्मस्थान-नरसिंहपुर (राज्य-मध्यप्रदेश)है। इसी शहर-नरसिंहपुर में रहने वाली रानू ने जी.एन.एम. और बी.ए. की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्यक्षेत्र-नरसिंहपुर है तो सामाजिक क्षेत्र में राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ी हुई है। आपका लेखन वीर और ओज रस में हिन्दी में ही जारी है। आपकॊ नवोदित कवियित्री का सम्मान मिला है। लेखन का उद्देश्य- साहित्य में रुचि है।

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