दक्षिण चीन सागर मसला और भारत का हस्तक्षेप

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shivam diwedi
आखिर क्यों विवाद है इस क्षेत्र को लेकर,और इस मुद्दे पर भारत और जापान की क्या राय है? दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर का एक हिस्सा है जो सिंगापुर और मलक्का जलडमरू से लेकर ताइवान जलडमरू तक फैला हुआ है,जिसके अगल-बगल इन्डोनेशिया,मलक्का,फारमोसा और मलय व सुमात्रा प्रायद्वीप हैं। इस सागर का दक्षिणी इलाका चीन की मुख्य भूमि को छूता है तथा दक्षिण पूर्व ताइवान से छूता हैl पूर्व में वियतनाम और कंबोडिया की दावेदारी है,तो उत्तरी इलाके में इन्डोनेशिया की,वहीं पश्चिम में फिलीपींस की है। दुनिया केएक तिहाई व्यापारिक जहाज इसी समुद्री इलाके से गुजरते हैं। भारत का ५५ फीसदीसमुद्री व्यापार इसी जल क्षेत्र के जरिए होता है। मछली व्यापार की तो यह रीढ़ की हड्डी है। माना जाता है कि,इस दक्षिण चीन सागर की तलहटी में तेल और गैस का विशाल भंडार है। यूएस एनर्जी इन्फार्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार-इसकी परिधि में करीब ११ अरब बैरल गैस,तकरीबन १९० ट्रिलियन क्यूबिक फीट और मूँगे के विस्तृत भंडार हैं। १९७० मेंवियतनाम सहित कई देशों ने पता लगायाकि,यहाँ तेल और गैस के भंडार हैं। तब चीन इसे अपनी बपौती बताने लगा,और अन्य देशों द्वारा यहाँ संसाधनों के दोहन पर रोक लगाने के प्रयास तेज कर दिए। चीन इस सागर के ९०फीसद हिस्से पर अपना नियंत्रण चाहता है,उसने एक कथित ऐतिहासिक नक्शे के आधार पर ‘नाइन डैश लाईन’ के नाम से सागर की सीमाबंदी कर दी है। यहाँ कई छोटे-छोटे द्वीप हैं,जिन पर अधिकार को लेकर भी विवाद है। खासतौर पर दो बड़े द्वीप समूह- स्प्रैट्लीऔर पारसेल को लेकर चीन और अन्य देशों के बीच तनाव है। पारसेल द्वीप पहले चीन और वियतनाम के कब्जे में था,लेकिन १९७४ के बाद की झड़प में चीन ने वियतनाम के १४सैनिकों को मार दिया और पूरे द्वीप पर कब्जा कर लिया। अब स्प्रैट्ली द्वीप को लेकर भी चीन और वियतनाम,मलेशिया,फिलीपींस और ब्रुनेई के बीच विवाद है। यदि चीन पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लेता है तो,भारत के व्यापारिक जहाजों के खुले आवागमन पर असर पड़ेगा। भारत यहाँस्वतंत्र परिवहन चाहता है,साथ ही दक्षिण चीन सागर में खनिज संसाधनों की स्वतंत्र खोज का पक्षधर भी है,और हर किसी भी विवाद काफैसला अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत करने की बात कह रहा है। चीन को यही बात खटकने लगी है। यही वजह है कि,चीन की तानाशाही को अमेरिका के बाद भारत ने भी चुनौती दे दीहै। भारत ने कहा है कि,हम भी दक्षिण चीन सागर में अपना जहाज भेजने या उसके ऊपर उड़ान भरने को आज़ाद हैं। वह इलाका ‘फ़्रीडम ऑफ नेविगेशन’ के दायरे मेंआता है। जानकारों का मानना है कि,यह पहला मौका है जब भारत ने इस विवादित दक्षिण चीन सागर क्षेत्र के मामले पर इतना कड़ा रुख अपनाया है। भारत दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व को रोकने के लिए भी प्रयास कर रहा है। पिछले साल दिसंबर में भारतीय जल सेना द्वारा कहा गया था कि,दक्षिण चीन सागर में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए वह सभी प्रकार के कुल ५०० वायुयान और १५० समुद्री जहाज अपने बेड़े में शामिल करेगीl इसके अलावा पाँच साल बाद से  हर साल ५ समुद्री जहाज का निर्माण भी किया जाएगा।

अगर फ़्रीडम ऑफ नेविगेशन की बात करें तो
अंतर्राष्ट्रीय कानून के समुद्री कानून  देशों को उनकी समुद्री सीमा से १२ हज़ार समुद्री मील तक के क्षेत्र में अधिकार देता है। उसके बाहर का क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय सीमा माना जाएगा। कोई भी देश इस सीमा के बाहर किसी भी क्षेत्र पर दावा नहीं कर सकता। ऐसा क्षेत्र  भी देश के जहाज के आने- जाने के लिए या विमानों के उड़ान भरने के लिए खुला माना जाता है। भारत इन्हीं नियमों को मनवाना चाहता है। चीन ने अंतर्राष्ट्रीय कानून को नहीं माना,और १७ साल तक फिलीपींस ने  कूटनीतिक प्रयासों के जरिए चीन से दक्षिण चीन सागर विवाद सुलझाने का प्रयास किया,लेकिन बात नहींबनीl तब उसने २०१३ में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायधिकरण `परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन` का दरवाजा खटखटाया। न्यायाधिकरण ने १२/७ को संयुक्त समुद्री कानून के अनुच्छेद २५८ के तहत फैसला दियाकि,-‘नाईन डैश लाईन’ की परिधि में आने वाले जल क्षेत्र पर चीन कोई ऐतिहासिक दावेदारीनहीं कर सकता,लेकिन चीन इस फैसले को भीनहीं मान रहा है।
भारत की तरह जापान भी इस क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व से प्रशांत महासागर में संतुलन बिगड़ने की आशंका जताता रहा हैl इस मुद्दे पर लाओस, दक्षिण कोरिया,वियतनाम व थाइलैंड भी जापान के साथ ही हैं। यही वजह हैकि,भारत-अमेरिका मालाबार नौसेना अभ्यास में जापान भी शामिल था,और इस पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की थी। वहींभारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया जापान यात्रा के दौरान चीनी चेतावनी को दरकिनार करते हुए भारत और जापान ने दक्षिण चीन सागर के मुद्दे को अपनी बैठक में उठाया था। मौजूदासमय में, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का रूखभी दक्षिण चीन सागर के मसले पर  चीनके खिलाफ ही है। प्रधानमंत्री मोदी की औरराष्ट्रपति ट्रम्प की मुलाक़ात में चीन केसंबंधों और दक्षिण चीन सागर के मुद्दे परचर्चा होने के आसार हैं।

                                                                                                               #शिवम द्विवेदी `शिवाय`

परिचय : शिवम् द्विवेदी मूल रूप से रीवा में और पढ़ाई के लिए इंदौर में बसे हुए हैंl आप पत्रकारिता के विद्यार्थी होने के साथ ही भारतीय- विदेशिक सम्बन्ध औरअंतर्राष्ट्रीय राजनीति में रुझान रखते हैंl आपको लेख लिखने का शौक है और लेखनपिताजी के कवि होने से  विरासत में मिलाहैl 

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।