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सृष्टा की नरम कल्पना नारी,
सॄष्टा की ओर चाहना नारी।
सृष्टा की आराध्या नारी,
सॄष्टा मन भावना नारी॥
मानव मन की अर्चना नारी,
नित्य प्रति उपासना नारी।
जीवन की है भूमि नारी,
सुंदर मन की उर्मि नारी॥
एक हवा का झोंका नारी,
मृगतृष्णा-सा धोखा नारी।
रौरव नर्क द्वार है नारी,
फिर भी स्वर्ग अपार है नारी॥
सुख-दुख का है संगम नारी,
स्थावर जड़ जंगम है नारी।
बच्चों का आधार है नारी,
चलता निरन्तर संसार है नारी॥
प्रतिभा का आगार है नारी,
प्रतिमा का आकार है नारी।
पीड़ा पर एक जीत है नारी,
मानव मन की प्रीत है नारी॥
आधी पुरुष अर्ध है नारी,
पुरुष बिना दुर्धर्ष है नारी।
इक दूजे की पूरक नारी,
घर-घर की है पूजक नारी॥
#सुशीला जोशी
परिचय: नगरीय पब्लिक स्कूल में प्रशासनिक नौकरी करने वाली सुशीला जोशी का जन्म १९४१ में हुआ है। हिन्दी-अंग्रेजी में एमए के साथ ही आपने बीएड भी किया है। आप संगीत प्रभाकर (गायन, तबला, सहित सितार व कथक( प्रयाग संगीत समिति-इलाहाबाद) में भी निपुण हैं। लेखन में आप सभी विधाओं में बचपन से आज तक सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों का प्रकाशन सहित अप्रकाशित साहित्य में १५ पांडुलिपियां तैयार हैं। अन्य पुरस्कारों के साथ आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान द्वारा ‘अज्ञेय’ पुरस्कार दिया गया है। आकाशवाणी (दिल्ली)से ध्वन्यात्मक नाटकों में ध्वनि प्रसारण और १९६९ तथा २०१० में नाटक में अभिनय,सितार व कथक की मंच प्रस्तुति दी है। अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षण और प्राचार्या भी रही हैं। आप मुज़फ्फरनगर में निवासी हैं|
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Tue Oct 3 , 2017
प्रकृति ने हमें जन्म दिया है तो जिंदा रहने के साधन भी भरपूर दिए हैं। अगर हम प्रकृति के साथ तालमेल बैठा कर चलते तो आज हम भी सुखी और स्वस्थ होते और ये वसुंधरा भी खुश होकर हम पर यूं ही वरदान लुटाती रहती, किन्तु मानव की हर एक […]