मंद-मंद मुस्काती हिन्दी

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kartikey
हिन्दी नारी की बिंदी है,
उससे अंगार निकलने दो
ये मन-से करुणा है हिन्दी,
जन-जन का सपना है हिन्दी।
भावों की तूलिका है हिन्दी,
बिटिया की लोरी है हिन्दी
माँ-सी आहट है हिन्दी,
फौजी की भाषा है हिन्दी।
हिन्दी जीवन का गहना है,
बस ये ही तुमसे कहना है,
अब बारी है अपनेपन की,
कुछ तेरे-मेरे कहने की।
इसमें एक रंग उतरने दो,
जो सुर्ख हुआ था खून कभी
उसमें-भी जीवन भरने दो,
हिन्दी है तुलसी आँगन की।
जो जेठ में लगती सावन-सी,
इसको गंगा-सी बहने दो
अपने मन की-भी कहने दो,
हो शीर्ष-शिखर हिमालय-सी
उसको भी आसमां छूने दो।
न मन में कोई दुविधा हो ,
बस, प्रेम-प्यार की भाषा हो,
बस, कालजयी हो यह हिन्दी ,
इसे मंद-मंद मुस्काने दो॥

                                                              #कार्तिकेय त्रिपाठी

परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक पद पर है।

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