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हिन्दी नारी की बिंदी है,
उससे अंगार निकलने दो
ये मन-से करुणा है हिन्दी,
जन-जन का सपना है हिन्दी।
भावों की तूलिका है हिन्दी,
बिटिया की लोरी है हिन्दी
माँ-सी आहट है हिन्दी,
फौजी की भाषा है हिन्दी।
हिन्दी जीवन का गहना है,
बस ये ही तुमसे कहना है,
अब बारी है अपनेपन की,
कुछ तेरे-मेरे कहने की।
इसमें एक रंग उतरने दो,
जो सुर्ख हुआ था खून कभी
उसमें-भी जीवन भरने दो,
हिन्दी है तुलसी आँगन की।
जो जेठ में लगती सावन-सी,
इसको गंगा-सी बहने दो
अपने मन की-भी कहने दो,
हो शीर्ष-शिखर हिमालय-सी
उसको भी आसमां छूने दो।
न मन में कोई दुविधा हो ,
बस, प्रेम-प्यार की भाषा हो,
बस, कालजयी हो यह हिन्दी ,
इसे मंद-मंद मुस्काने दो॥
#कार्तिकेय त्रिपाठी
परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक पद पर है।
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Tue Sep 19 , 2017
अनुपम है चिर नूतन न्यारा। अमिट अमर प्रिय! प्रेम हमारा॥ रुदन हासमय गंध लिए मन, दुर्गम पथ का कर अभिनन्दन। मखत्राता मृत्युंजय बनकर, कालवलय से लड़ता तनकर॥ कर विजित समर जीवन सारा। रणबाँकुरा सुकोमल प्यारा॥ अनुपम है चिर नूतन न्यारा। अमिट अमर प्रिय! प्रेम हमारा॥ त्रयताप नहीं मन की थाती, […]
बढ़िया रचना
जी धन्यवाद