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शब्दों के साधक अगर, रहे साध कर मौन।
कमजोरों की वेदना, कहो कहेगा कौन॥
कोई भी सत्ता रहे, कोई पक्ष विपक्ष।
कविता तो हर बात को, कहती है निष्पक्ष॥
यादों में ज़िन्दा रहे, केवल वे जन शेष।
जीवन में जो कर गए, कोई काम विशेष॥
निष्ठा से पालन करें, यदि अपना कर्तव्य।
जीवन का प्रासाद फिर, निश्चित होगा भव्य॥
जो समझे हैं ठीक से, जीवन का भावार्थ।
वे जन निष्ठा भाव से, करते हैं पुरुषार्थ॥
जग में यश पाते सदा, केवल वही सुधीर।
सेवा से हरते रहे, जो औरों की पीर॥
कभी चीरते तीर से, कभी मधुर संगीत।
शब्द बढ़ाते शत्रुता, शब्द बनाते मीत॥
कटु वाणी करती सदा, राहों को अवरुद्ध।
शब्दों के परिणाम हैं, जानें कितने युद्ध॥
कटु शब्दों की मार को, माप सका है कौन।
‘बंसल’ कटु मत बोलिए, चाहे साधो मौन॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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