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मैं तिरंगे के लिए जान भी दे जाऊंगा,
मेरे इस ध्वज को चंहुओर मैं फहराऊंगा l
आंच आने नहीं दूंगा मैं सरज़मीं को कभी,
मैं हर-एक सोए हुए शख़्स को जगाऊंगा ll
मेरा ईमान मेरी जान ये तिरंगा है,
मेरी धड़कन की भी पहचान ये तिरंगा है l
जीत के भाव से लबरेज है ये ध्वज मेरा,
शहीद-ए-वीर का श्रंगार ये तिरंगा है ll
मेरा हर राग मेरा गीत ये तिरंगा है,
मेरे छोटे से दिल का मीत ये तिरंगा है l
इसके चरणों में मेरा बार-बार वंदन है,
मेरे इस मुल्क की हर रीत में तिरंगा है ll
निराला,सूर के शब्दों में महक इसकी है,
कभी कोयल-कभी बुलबुल की चहक इसमें है l
मेरे इस ध्वज में सारी कायनात बसती है,
ज़मी आकाश रसातल की महक इसमें है ll
मैं तिरंगे के………..मेरे इस ध्वज………l
आंच आने नहीं…….मैं हर-एक सोए……ll
#डॉ. हरीश ‘पथिक’
परिचय : मध्यप्रदेश के डॉ.हरीष कुमार सोनी पेशे से अध्यापक हैं,और साहित्यिक नाम ‘पथिक’ लगाते हैंl आप सीहोर रोड की कालापीपल मंडी(जिला शाजापुर,म.प्र.) में रहते हैंlरूचि पढ़ाई,कविता और कहानी सहित कभी-कभी मंचों पर कविता पाठ में भी हैl कई दैनिक अखबारों के साथ अन्य पत्रिकाओं में भी कविता एवं लेख प्रकाशित होते रहते हैं। कुछ शोध-पत्र भी प्रकाशित हुए हैं। आपकी पीएच.डी. का विषय-हिन्दी एवं शीर्षक-`अज्ञेय की कहानियॉं:संवेदना और शिल्प` थाl
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Super
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