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तुझसे कैसी
लगी यह लगन
नहीं है चैन।
मैं नाचूं नित्य
होकर के मगन
श्याम रंग में।
पनघट पे
गागर भरकर
छवि निहारुं।
बैठी आँगन
पहरों इन्तजार
मैं नित्य करुं।
सदा सुनाना
सजा साज को तुम
गीत नेह के।
कब तक
तेरी बाट मैं तकूँ
आता है रोना।
जुल्मी ,सांवरे
मन बसिया मेरे
आजा लौट के।
सूखी है लता
लगते ही नजर
पल में सारी।
हे, नंदलाला,
देकर दर्श अब
पीर को हरो॥
#हेमा श्रीवास्तव
परिचय : हेमा श्रीवास्तव ‘हेमा’ नाम से लिखने के अलावा प्रिय कार्य के रुप में अनाथ, गरीब व असहाय वर्ग की हरसंभव सेवा करती हैं। २७ वर्षीय हेमा का जन्म स्थान ग्राम खोचा( जिला इलाहाबाद) प्रयाग है। आप हिन्दी भाषा को कलम रुपी माध्यम बनाकर गद्य और पद्य विधा में लिखती हैं। गीत, ‘संस्मरण ‘निबंध’,लेख,कविता मुक्तक दोहा, रुबाई ‘ग़ज़ल’ और गीतिका रचती हैं। आपकी रचनाएं इलाहाबाद के स्थानीय अखबारों और ई-काव्य पत्रिकाओं में भी छपती हैं। एक सामूहिक काव्य-संग्रह में भी रचना प्रकाशन हुआ है।
ई-पत्रिका की सह संपादिका होकर पुरस्कार व सम्मान भी प्राप्त किए हैं। इसमें सारस्वत सम्मान खास है। लेखन के साथ ही गायन व चित्रकला में भी रुचि है।
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Mon Aug 14 , 2017
सावन का महीना,और पानी की बौछार, राखी का त्योहार और खड़ी मैं द्वार। भईया तुम आ जाना …………॥ रेशम के धागों से हमने राखी बनाई, धागे में चुन-चुन रंगीली मोती पिराई भईया,रखना मेरी इस राखी की लाज, और सूनी न रहे अब कलाई तेरी आज। भईया तुम आ जाना …………..॥ […]
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कहाँ हो ये स्वामी, वसन बिनु कामी, कर रहे,। तुम्ही हो दीनों के, धरम धन रोके, शर लिए। दुखारी हूँ भारी, सरकि शिर सारी, सब गयी। बचाने को धावो, बिलम नहि लावो, सुरपते ।। शिखरनी को मैने ११,९,५ की यति पर पढा और लिखा है जबकी आप की लिखी शिखरनी इस यति विधान से भिन्न है। सादर निवेदनार्थ । “डाॅ0वी0पी0सिंह_भ्रमर, चित्रकूट (उ0प्र0)