मातृ दिवस – अम्मा की पाती

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मेरे सामने
दराज खुली पड़ी है,
दराज में पत्रों की पिटारी है।
अंतर्देशीय, लिफ़ाफ़े, पोस्टकार्ड,
पत्र खुले, सहसा
अतीत खुल गया।
पत्रों में से चेहरा
अम्मा का उभर आया।
’बिटिया, तुम्हारी चिंता
बहुत रहती है।
लाडो, तुम्हारी
याद भी बहुत आती है।
सावन में आ रही हो न!
तुम्हारी पसंद की
सितारे टंकी साड़ी
गुलाबी शिफॉन की,
मैचिंग की चूड़ियाँ गुलाबी,
पाज़ेब-बिछुड़ी
सब ले कर रखी है।
तुम्हारे आने की ख़बर से
बाबूजी ख़ुश तो बहुत हैं
पर बोलते कुछ नहीं,
ख़ुशी से बस चेहरा लाल है।
चलो, अब रखती हूँ,
बाबूजी के लिए चाय चढ़ा दूँ।
शेष फिर, ख़ूब सारा आशीष!
ख़ुशियों से तुम्हारी
सदा झोली भरी रहे।’
देखा आसपास इधर-उधर,
झोली तो मेरी
ख़ुशियों से भरी थी
पर नरम- मुलायम
आँचल लिए
पत्र से झाँकती
अम्मा नहीं थी।
उमड़ते आँसुओं को
आँचल में,
ख़ुशियों संग सहेज लिया।
बरसते सावन ने
अंतर-बाहर भिगो दिया।

#यशोधरा भटनागर

देवास
मध्य प्रदेश

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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