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ठूँठ
बसंत
हुआ।
पुण्य
अनन्त
हुआ।
कथ्य यहाँ का।
शिल्प वहां का।
दर्शन ठूँसा,
कहाँ कहाँ का।
दो-कौड़ी की
कविता लिखकर
तुक्कड़
पंत हुआ।
साठ-गाँठ
तिकड़म से यारी
खुद को कहता
है अवतारी
लूट, सती की
लज्जा चुरकट
यूँ जय
वन्त हुआ।
इधर-उधर का
लूटा-पाटा
इसको छाँटा
उसको काटा।
दान लिखाकर
मंदिर जी में
डाकू संत
हुआ।
मिली ना पूरी
बची ना आधी
हुई समय की
यूँ बर्बादी।
जीते जी जीवन
का ऐसे,कैसे
अंत हुआ।
पुण्य अंनत
हुआ।
#मनोज जैन ‘मधुर’
परिचय : मनोज जैन ‘मधुर’ इस संसार में १९७५ में आए,और आपका निवास ग्राम-बामौरकलां(शिवपुरी, (म.प्र.)है। अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर की शिक्षा पाकर निजी कम्पनी में बतौर क्षेत्रीय विक्रय प्रबंधक कार्यरत हैं। आपकी प्रकाशित कृति-एक बूँद हम (गीत संग्रह),काव्य अमृत (काव्य संग्रह)सहित अन्य विविध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रकाशन है। दूरदर्शन व आकाशवाणी से भी रचनाएँ प्रसारित हुई हैं। संकलित प्रकाशन में ‘धार पर हम-2’ और ‘नवगीत नई दस्तकें’ आदि प्रमुख हैं। दो गीत संग्रह तथा पुष्पगिरि खण्डकाव्य व बालकविताओं का संग्रह प्रकाशनाधीन है। आपको कई सम्मान मिले हैं,जिसमें खास एक दोहा संग्रह सम्मान-मध्यप्रदेश के राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक नागरिक सम्मान(२००९),शिरढोणकर स्मृति सम्मान,म. प्र. लेखक संघ का रामपूजन मलिक नवोदित गीतकार-प्रथम पुरस्कार (२०१०) और अभा भाषा साहित्य सम्मेलन का साहित्यसेवी सम्मान आदि हैं। २०१७ में अभिनव कला परिषद भोपाल द्वारा ‘अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान’ से भी आप सम्मानित हैं। मध्य प्रदेश की इन्दिरा कॉलोनी(बाग़ उमराव दूल्हा)भोपाल में आप रहते हैं।
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Fri Aug 11 , 2017
हर दिन नारी की इज्जत से ‘खेला’ जाता है, कभी शब्दों से तो,कभी हाथों से नारी को ‘मैला’ किया जाता है। अपमान के घूँट को पीना नारी का ‘फर्ज’ माना जाता है, मान तो पुरूषों के हिस्से में आता है.. नारी को तो आज भी एक ‘कर्ज’ माना जाता है। […]