तेरे मुख पर

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prabhat dube
रजत रंजनी तेरे मुख पर,
चमक नहीं अब आएगी।
तड़प-तड़प कर गुमसुम यूं ही,
घुट-घुटकर रह जाएगी।
एक गुफा जहाँ नहीं उजाला,
ये कैसे बतलाएगी।
रजत रंजनी तेरे मुख पर,
चमक नहीं अब आएगी।
कुछ बातें मैं यूं ही जानता,
मुझसे क्या छिप पाएगी।
ढँक-ढँककर बढ़ती है तड़पन,
मुझको क्या समझाएगी।
रजतरंजनी तेरे मुख पर ,
चमक नहीं अब आएगी।
जो रखी है खुद के अंदर,
कैसे किसको दे पाएगी।
जहाँ तड़पता हर कोई है,
वो तड़प कहाँ सह पाएगी।
रजत रंजनी तेरे मुख पर,
चमक नहीं अब आएगी।
अजब दास्ताँ तेरी भी है,
खुद दबे सहमे रह जाएगी।
मुझको क्या बतलाएगी,
मुझको क्या समझाएगी।
मैं तो बस,सब कुछ हूँ जानता,
मुझसे कब तक ढँक पाएगी।
रजत रंजनी तेरे मुख पर,
चमक नहीं अब आएगी॥
                                      #प्रभात कुमार दुबे 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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