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कभी फरहाद कभी मजनूं कभी रांझा बना डाला
तुम्हारे इश्क ने जानां मुझे क्या-क्या बना डाला
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पिला कर खून अपना पाला जिसको उम्र भर मैंने
उस दिल को एक पल में तुमने अपना बना डाला
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अपने आप में महफिल हुआ करता था कभी मैं
तुम्हारी याद ने मुझे भीड़ में तनहा बना डाला
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सदा देती रही मंज़िल मगर मैं रूक नहीं पाया
सफर की जुस्तजू ने मुझको आवारा बना डाला
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हो मौसम कोई भी हर वक्त रहती हैं लबालब ये
जुदाई ने तो मेरी आँखों को दरिया बना डाला
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जो दिल में ही था उसको ढूँढने की रौ में इंसां ने
कहीं मंदिर कहीं मस्जिद कहीं गिरजा बना डाला
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#भरत मल्होत्रा
परिचय :–
नाम- भरत मल्होत्रा
मुंबई(महाराष्ट्र)
शैक्षणिक योग्यता – स्नातक
वर्तमान व्यवसाय – व्यवसायी
साहित्यिक उपलब्धियां – देश व विदेश(कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा “दीपशिखा सम्मान”, “शब्द कलश सम्मान”, “काव्य साहित्य सरताज”, “संपादक शिरोमणि”
झांसी से प्रकाशित “जय विजय” पत्रिका द्वारा ” उत्कृष्ट साहितय सेवा रचनाकार” सम्मान एव
दिल्ली के भाषा सहोदरी द्वारा सम्मानित, दिल्ली के कवि हम-तुम टीम द्वारा ” शब्द अनुराग सम्मान” व ” शब्द गंगा सम्मान” द्वारा सम्मानित
प्रकाशित पुस्तकें- सहोदरी सोपान
दीपशिखा
शब्दकलश
शब्द अनुराग
शब्द गंगा
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