विरहणी

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rachana saxsena
हे नाथ ! तुम जब चले,
भ्रात भाभी को लिए।
पग तुम्हारे बढ़ रहे,
साथ, उनके साथ में।
नैन मेरे ताकते,
दूर तक है झांकते।
वह छवि सिमट गई,
रूठते वे रास्ते।
मिलन की एक घड़ी,
लखन संग जो मिली।
बन्द पलकों में किए,
जी रही वह एक कली।
रूपवान ,रूपवति,
सप्तरंग ओढ़नी।
कान्ति रितु परिधान से,
प्रकृति मन मोहिनी।
कुम्हार-सी चाक बन,
चौदह वर्ष घूमती।
तन की माटी देह बन,
विरहणी उर्मी देखती।
चढ़ गई वह चाक पर,
सृजन दीप के लिए।
दो नैन की बाती बनी,
नीर से गीले किए।
प्रेम रस में डूबकर,
विरहणी के दीपक जले।
छोड़कर जब से गए,
नीर न बहते बन्द हुए।
लौट रहे हैं आज वह,
भ्रात-भाभी को लिए।
दीपमाला से सजा दो,
सूनी यह नागरी।
मेरी लौ से जला दो,
दीपक वह पावनी।
हर तरफ हो रोशनी,
प्रेम को बिखेरती।
स्वागत के थाल लिए,
राह मैं हूं देखती।
तम को भी यूं सजा दो,
दीप की छाया तले।
तक रहे हैं नैन उसके,
नीर काजल से सने।
दूर उनसे जब रही,
छाया तिमिर की रही।
वह छाया अब प्रिय है,
मेरे ही तले रही।
तन मेरा दीप बना,
नैन फिर बाती बने।
नीर से डूबकर ,
आत्म लौ जलती रही।
तिमिर मेरे दीप की,
एक सखी छाया बनी।
कर आलिंगन सो गई,
ध्यान मग्न ही रही।
जल गए दीपक सभी,
हो गई फिर रोशनी।
सप्त स्वरों के राग से,
गीत गाती रागिनी।
कुसुम सब महक उठे,
प्रेम की सरिता बही।
राम लखन सीय को,
देख अयोध्या रही।
आंखों में नीर लिए,
ह्रदय में पीर लिए।
माता को देखकर,
तीनों ने चरण छुए।
एक दृश्य मिलन का,
प्रेम के चमन का।
रात की रानी जगी,
रात से वह जा मिली।
दो दीपक एक होकर,
मिलन की घड़ी जगी।
प्रेम की रात अनोखी,
अब विरहणी को मिली।
अतुलित दीप से जली,
प्रेम लौ से बंधी।
रोशनी ही रोशनी,
दीपावली पावनी।
                                                                                          #रचना सक्सेना
परिचय : श्रीमती रचना सक्सेना का निवास उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में एलोपी बाग में है। आपकी रुचि गद्य में कहानी,लघुकथा में तो,पद्य में कविता में है। भारत के प्रतिभाशाली हिन्दी रचनाकार पुस्तक में दो कविताएं, भारत की प्रतिभाशाली हिन्दी कवियित्रियां पुस्तक में दो कविताएं सहित काव्य अमृत पुस्तक में भी कविताएं प्रकाशित हुई हैं। इसके साथ ही कई पत्रिकाओं में रचना प्रकाशन हुआ है। आपको साहित्य एवं सांस्कृतिक मंच (हिन्दी साहित्य शोध अकादमी,राजस्थान)से सर्वश्रेष्ठ साहित्य सम्मान मिला है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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