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1-
घर,बाहर हो,या हो फैक्ट्री ।
विदआउट पीपीई, नो इंट्री ।।
2-
आज कसम हम खाएँगे ।
पी पी ई अपनाएँगे ।।
1-
घर,बाहर हो,या हो फैक्ट्री ।
विदआउट पीपीई, नो इंट्री ।।
2-
आज कसम हम खाएँगे ।
पी पी ई अपनाएँगे ।।
3-
हमसे है परिवार हमारा ।
फर्ज सुरक्षा का है प्यारा ।।
4-
सुरक्षा को अपनाएँगे ।
दुर्घटना दूर भगाएँगे ।।
5-
मैं बदलूँगा, तुम बदलोगे, बदलेगा संसार ।
सभी सुरक्षित,सभी स्वस्थ हों,एनएससी उपहार ।।
6-
सुरक्षित वापस घर है आना ।
नहीं चलेगा कोई बहाना ।।
7-
अपना जीवन है अपनों का ।
बीवी – बच्चों के सपनों का ।।
8-
होश में रहकर जोश दिखाएँ ।
सुरक्षा का परिवेश बनाएँ ।।
9-
शुद्ध हवा पानी प्रकाश है ।
सुरक्षा से ही हर विकास है ।।
10-
रहें सुरक्षित,रखें सुरक्षित,यही हमारा नारा है।
दुर्घटना को शून्य बनाएँ, जीवन सबसे प्यारा है ।।
11-
रखो सुरक्षित तीनों को ।
साथी, स्वयं, मशीनों को ।।
12-
पहले सेफ्टी, फिर हर काम ।
वरना होगा काम तमाम ।।
13-
जीवन मिलता नहीं दुबारा ।
सुरक्षा है एक मात्र सहारा ।।
14-
जीवन होता है अनमोल ।
एन एस सी की जय बोल ।।
15-
नशा बना देता है दानव ।
बचकर रहना इससे मानव ।।
16-
हौसलों के पंख से उड़ान भर ।
सुरक्षित होकर पूरा अभियान कर ।।
17-
बनना नहीं हमें नादान ।
शून्य दुर्घटना, अपनी शान ।।
18-
सजग समर्थ कुशल मजदूर ।
दुर्घटना से रहता दूर ।।
19-
साउस कीपिंग का ये अर्थ ।
नहीं करो जीवन को व्यर्थ ।।
20-
एन एस सी का है संदेश ।
सुरक्षित होवे अपना देश ।।
परिचय
नाम : अवधेश कुमार विक्रम शाह
साहित्यिक नाम : ‘अवध’
पिता का नाम : स्व० शिवकुमार सिंह
माता का नाम : श्रीमती अतरवासी देवी
स्थाई पता : चन्दौली, उत्तर प्रदेश
जन्मतिथि : पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर
शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र), बी. एड., बी. टेक (सिविल), पत्रकारिता व इलेक्ट्रीकल डिप्लोमा
व्यवसाय : सिविल इंजीनियर, मेघालय में
प्रसारण – ऑल इंडिया रेडियो द्वारा काव्य पाठ व परिचर्चा
दूरदर्शन गुवाहाटी द्वारा काव्यपाठ
अध्यक्ष (वाट्सएप्प ग्रुप): नूतन साहित्य कुंज, अवध – मगध साहित्य
प्रभारी : नारायणी साहि० अकादमी, मेघालय
सदस्य : पूर्वासा हिन्दी अकादमी
संपादन : साहित्य धरोहर, पर्यावरण, सावन के झूले, कुंज निनाद आदि
समीक्षा – दो दर्जन से अधिक पुस्तकें
भूमिका लेखन – तकरीबन एक दर्जन पुस्तकों की
साक्षात्कार – श्रीमती वाणी बरठाकुर विभा, श्रीमती पिंकी पारुथी, श्रीमती आभा दुबे एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा
शोध परक लेख : पूर्वोत्तर में हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियता
भारत की स्वाधीनता भ्रमजाल ही तो है
प्रकाशित साझा संग्रह : लुढ़कती लेखनी, कवियों की मधुशाला, नूर ए ग़ज़ल, सखी साहित्य, कुंज निनाद आदि
प्रकाशनाधीन साझा संग्रह : आधा दर्जन
सम्मान : विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा प्राप्त
प्रकाशन : विविध पत्र – पत्रिकाओं में अनवरत जारी
सृजन विधा : गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधायें
उद्देश्य : रामराज्य की स्थापना हेतु जन जागरण
हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जन मानस में अनुराग व सम्मान जगाना
पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जन भाषा बनाना
तमस रात्रि को भेदकर, उगता है आदित्य |
सहित भाव जो भर सके, वही सत्य साहित्य ||
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