बेटियाँ

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krishnkumar nirav
रखकर किताब दौड़ के आती हैं बेटियां,
धोकर गिलास पानी पिलाती हैं बेटियां,
सेवा का भाव रखती हैं निष्काम हृदय में-
देखा है मैंने सिर भी दबाती हैं बेटियां।
दिल से सदैव नेक मनाती हैं बेटियां,
शगुनों पे शगुन रोज उठाती हैं बेटियां,
किसने कहा है बेटियां होती हैं पराई-
दुख-दर्द में कब छोड़ के जाती हैं बेटियां।
                                                                   #डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी ‘नीरव’

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