पाखंड

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 himanshu mitra

पाखण्ड ही तो है जो ये तुम
रोज खुद को समझाते हो,
फल में देरी कहाँ है क्यों इस
झूठ से खुद को बहलाते होl
परिश्रम तो करो इन हाथों से,
जिन्हें तुम रोज प्रार्थना के लिए उठाते होl
परिणाम के बारे मे क्यों सोचते हो,
पहले खुद को तो जान जाओ
क्या तुम कर पाए हो,
जितना करना चाहिए था
कर्मों का पेट भर पाए हो,
जितना भरना चाहिए थाl
कभी उनसे पहले अपनी
सुबह को जगा के दिखाओ
रोज जल्दी सो जाते हो,
पहले खुद की नींद को समझाओ
अखबारों में तो तुम,
कुछ भी छपा सकते हो
पर्दे पर चलती फिल्मों में नाम के
आगे उपाधियां लगा सकते हो
पर कौन सुनने आएगा तुम्हारे
इस पाखंडी राग को,
सच तो सच ही रहेगा,
चुरा नहीं सकते तुम
इससे अपनी आंखों कोl 
नीले सियार दिखते हो,
दूसरों की खाल को
खुद पर जड़ते हो,
हिम्मत की होती यदि
उठकर चलने की
नहीं जरूरत होती इस,
पाखण्ड के कीचड़ में पलने कीl
बहुत आसान है लोगों
को उसमें गिराना
उनके चेहरों पर पड़ी शिकनों
को और बढ़ाना
कीचड़ में सने इस तन
की गन्ध सूंघे कौन?
पाखंड ही तो है ये,
तुम बने हो मौनl
दूसरों को गिराकर आगे
निकल जाते हो,
फिर भी खुद की छवि
को हसीं-जवान बताते हो
गलत राह पर हो जो ये दूसरों के
कपड़े फाड़कर नग्न करते हो,
किन्तु वास्तविकता में तुम
स्वयं ही नग्न खड़े होl
ऊपर से नीचे तक,
कीचड़ में सने होl 

                                                                                             #हिमांशु मित्रा

परिचय: हिमांशु मित्रा उत्तरप्रदेश राज्य के शिवपुरी (लखीमपुर खीरी) में रहते हैंl आपकी उम्र २० वर्ष तथा स्नातक उत्तीर्ण हैंl आप हिन्दी में लिखने का शौक रखते हैंl  

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