परिचय : जय विजय साहेब करीब २ साल से लेखन कार्य में हैं। आप परिवार सहित विदेश में पिछले तेरह बरस से बसे हुए हैं।
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इत्तेफ़ाकी भरा आलम न रहे,
मैं मैं ना रहूँ और तू तू न रहे।
इन्तज़ार मुझे फिर यूं न रहे,
मैं मैं ना रहूँ फिर तू तू न रहे।
मैं ख़ुद से तुझे…रिहा कर दूँगा,
बहती हुई तुझे…हवा कर दूँगा।
के हर कोई तुुझे…चाहेगा पाना,
ऐसी ही हसीन…सज़ा कर दूँगा॥
ख़ुद ख़ुदा भी तेरी…करे इबादत,
ऐसी ही नशीली…दुआ कर दूँगा॥
आदतन बिछड़…जाने की कोशिश,
मुकम्मल मैं कसम… ख़ुदा कर दूँगा॥
हर मर्ज़ फीका पड़… जाए जहाँ पे,
मयस्सर मरहम-ओ-दवा कर दूँगा॥
मरनेवाला भी…जीने की दुआ माँगे,
के जीने की उसकी… वजह कर दूँगा॥
#जय विजय साहेब
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