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एक नन्हीं-सी कली थी,
गर्त में कबसे पड़ी थी
पास में बस खार था,
बेरहम परिवार था
पथिक एक पथ पर मिला है…
आज मन उपवन खिला है।
धूल,वर्षा सब सही थी,
टूटकर फिर से खिली थी
कोई भी मंजिल नहीं थी,
राह में मुश्किल बड़ी थी
नव सृजन फिर से मिला है…
आज….।
अब हटा दो शूल सारे,
जख्म तुम देखो हमारे
जियूं तो किसके सहारे,
एक तुम ही हो हमारे
अब मुझे मधुवन मिला है…
आज….।
किश्तियों की आड़ में हूं,
डूबती जल धार में हूं
युग पुरूष मुझको निकालो,
लाज भारत की बचा लो
आज सरिता तट मिला है…
आज मन उपवन खिला है॥
#प्रमिला पान्डेय
परिचय : उत्तरप्रदेश के कानपुर से प्रमिला पान्डेय का नाता है। आप १९६१ में जन्मी और परास्नातक (हिन्दी)की शिक्षा ली है। लेखन में गीत,ग़ज़ल, छंद,मुक्तक और दोहे रचती हैं। हिन्दी गद्य में साहित्यिक उपन्यास(छाॅहो चाहति छाॅह)आ चुका है। आपने साहित्य गौरव सम्मान,सशक्त लेखनी सम्मान आदि पाए हैं।
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Fri Jun 23 , 2017
पापा वट वृक्ष है,घनी छाया है, पापा आत्मविश्वास है,मेरा साया है। पापा मेरे ख़ास हैं,मेरा संबल हैं, पापा मेरे बॉस हैं,मेरा मनोबल है। पापा मेरी दुनिया है,वो महान है, पापा मेरी आन है,मेरा सम्मान है। पापा की फटकार में भी प्यार है, पापा मेरे आदर्श हैं,वो सदाचार है। जब मुझे […]