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मेरे पिता
सच्चे सीधे
इन्सान थे,
मेहनती
किसान थे
भगवान के
अच्छे और
सच्चे भक्त थे।
मुझे जबसे याद है
मौसम कोई भी हो,
सुबह पाँच बजे
रोज उठ जाते थे,
आधा-एक घंटा
भगवान की भक्ति
पलंग पर ही
बैठे-बैठे करते थे
फिर उठकर सुबह
के नित्यकार्य करते थे।
नहाने के बाद भगवान
को नहलाना,रामायण
को नियमित पढ़ना,
भक्ति चौबे के नाम
से जाने जाते थे,
ऐसे हमारे पिता थे।
मुझे याद है हम
भाई बहिनों को,
कभी मारना तो
दूर रहा,डाँटते
भी नहीं थे।
फिर भी सभी को
पढ़ाया-लिखाया,
अच्छे संस्कार देकर
सबको योग्य बनाया।
अब इस दुनिया में
हमारे साथ नहीं हैं,
मगर उनकी यादें
मन से दूर नहीं है,
ऐसे पिता को
बार-बार नमन
प्रणाम करता हूँ।
श्रध्दा भाव से,
पिता दिवस पर
चरण वंदन करता हूँ।
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।
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Mon Jun 19 , 2017
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