Read Time45 Second
दीवारों के हिस्से
अनुशासन के,
तोड़फोड़ का हुआ धमाका हैl
आँखें सूजी हैं फागुन की,
किस्से बदल गए
बातचीत की दीवारों के
हिस्से बदल गए,
तिड़कझाम से भरा हुआ यह
सघन इलाका हैl
त्योहारों की साँस-साँस पर
भृकुटी के पहरे,
मेलजोल की शहनाई के
कान हुए बहरे,
पटाक्षेप के गगनांचल में
फटा पटाखा हैl
असमंजस की जोड़-तोड़ की
झाँझ लगी बजने,
उठा-पटक की शंकाओं के
साम लगे सजने,
बोलचाल के सूट-बूट का
सजा ठहाका हैl
#शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
Post Views:
639