कविता-चोरी

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कुछ मोती चुराए थे कभी समंदर से
अथाह लहरों के बीच
बड़ा मुश्किल था उन सीपों को बटोर पाना
कुछ हाथ आए, कुछ बह गए
उतने मोती भी न बटोर सकी
कि माला पिरो लेती
पर हाँ, हाथ का कंगन ज़रूर बना लिया
और कानों के झुमके
पर कसक अभी भी बाक़ी है
क्यूँकि अभी मोतियों का हार बाक़ी है
फिर जाऊँगी उसी समंदर किनारे
फिर लड़ूँगी उन लहरों से
और बीन लाऊँगी अपने सपनों को
पिरोऊँगी उन मोतियों को
और पूरा करूँगी अपना अधूरा ख़्वाब।

कीर्ति सिंह,

इन्दौर, मध्यप्रदेश

परिचय-
नाम-कीर्ति सिंह
जन्मतिथि-3 फ़रवरी
वर्तमान पता-महालक्ष्मी नगर, इंदौर
राज्य-मध्य प्रदेश
शहर-इंदौर
शिक्षा-मास्टर्स इन जर्नलिज़्म
कार्यक्षेत्र-पत्रकारिता व अध्यापन
संप्रति-एंकरिंग

सम्मान-
१-women excellence award(जयपुर)
२-इंदौर गौरव सम्मान
३-हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान
४-हिन्दी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान
५-सेज शक्ति महिला सम्मान
६-राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना सम्मान
७-नारी शक्ति सम्मान
८-M.P.INDORE STAR AWARD
९-कृति कुसुम सम्मान
१०-इंदौर प्रेस क्लब द्वारा सम्मानित एंकर

ब्लॉग-
अन्य उपलब्धियाँ-“सच कहूँ-“ये क़लम की सोहबत है” कविताओं की किताब का प्रकाशन

लेखन का उद्देश्य- ख़ुद की खोज

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