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भगवान बुद्ध के अनुसार शरीर और मन के प्रति सावधान रहने से दुखों से छुटकारा मिल सकता है। बुद्ध ने संसार को समझने और अपनी धारा तय करने के लिए एक तकनीक का प्रयोग किया जिसका नाम है-सती अनापान’ तकनीक। इसके अनुसार प्राण वह श्वांस जिसे अंदर खींचा जाता है और ‘अपान ‘ वह श्वांस है जिसे बाहर छोड़ा जाता है। यही प्रक्रिया प्राणांयाम है। प्राण के साथ हम बाह्य जगत के आकार को साक्ष्य मानते हैं और प्रश्वांस या अपान में हम अंदर की तरंग को बाहर फेंकते हैं,जबकि उस तरंग को तो भीतर रखना चाहिए। ऋषि-मुनियों ने किसी संकल्प या न दिखाई देने वाली हर वस्तु को ग्रहण न करना-प्राण का हवन बताया है और किसी संकल्प को भीतर उदय न होने देने को अपान माना है। उनका मानना है कि, न किसी संकल्प का उदय होगा और न मनुष्य को क्षोभ का सामना करना पड़ेगा। ऐसी अवस्था में प्राण और अपान की गति सम हो जाने पर प्राणों का निरोध हो जाता है और यही निरोधावस्था प्राणायाम है,अर्थात मन की विजितावस्था है। प्राणों के रुकने और मन के रुकने में कोई अंतर नहीं है।
गौतम बुद्ध अपनी ‘सती अनापान’ तकनीक में श्वांस -प्रश्वांस की चर्चा करते हैं,उनके अनुसार मन श्वांस से जुड़ा है और श्वांस दृष्टि से। अगर श्वांस पर दृष्टि केन्द्रित कर दी जाए तो भी तन के आकाश में किसी प्रकार का संकल्प उभरेगा ही नहीं,और न ही वायु मंडल से कोई संकल्प भीतर प्रवेश कर पाएगा। मन की यही अवस्था समाधि अवस्था है।
बुद्ध मानते हैं कि, मनुष्य प्रेम और घृणा दो अलग-अलग भाव नहीं है,वरन दोनों एक ही ऊर्जा के दो पहलू हैं। एक दूसरे के अभाव में किसी का कोई अस्तित्व नहीं है। घृणा उसी से की जाती है, जिससे प्रेम होता है। शत्रुता के अभाव में मित्रता का कहीं स्थान नहीं है। मित्र और शत्रु दोनों ही मन में गहरी पैठ बनाते हैं,जिसके कारण विकलता जन्म लेती है। बुद्ध कहते हैं कि,शत्रुता मिटानी है तो पहले मित्रता को खत्म करना पड़ेगा।
मनुष्य दुख से तंग आकर सुख की तलाश करता है, किन्तु सुख ढूंढे नहीं मिलता है। फिर क्यों न इसके विपरीत जाकर दुख में सुख की तलाश की जाए,तब शायद सुख मिल जाए। यही प्रयास तप कहलाता है,जिसे ऋषि-मुनि हमेशा करते रहे। दुख में सुख की खोज ही तपस्या है, क्योंकि जीवन के सत्य झील में पेड़ की छाया वट उल्टे दिखाई पड़ते हैं। अज्ञानी ईश्वर को दिखाई न देने के करण असत्य दिखाई देता है। हमारे मस्तिष्क में भी तो वस्तु का प्रतिबिम्ब} उल्टा ही बनता है,लेकिन जो दिखाई देता है वह भी सत्य कहाँ ? नींद खुलने के बाद स्वप्न जगत का कोई अस्तित्व नही है। सोने के बाद पूरा जगत विद्यमान होते हुए भी दिखाई नहीं देता और न ही जन्म से पहले और न मृत्यु के बाद। बुद्ध कहते हैं कि,अगर इस तकनीक का थोड़ा-सा भी उपयोग कर लिया जाए तो मुनष्य को महसूस होगा कि वह बदल रहा है। उसमें नयापन उभर रहा है और वह स्वयं को पहचानने लगा है।
#सुशीला जोशी
परिचय: नगरीय पब्लिक स्कूल में प्रशासनिक नौकरी करने वाली सुशीला जोशी का जन्म १९४१ में हुआ है। हिन्दी-अंग्रेजी में एमए के साथ ही आपने बीएड भी किया है। आप संगीत प्रभाकर (गायन, तबला, सहित सितार व कथक( प्रयाग संगीत समिति-इलाहाबाद) में भी निपुण हैं। लेखन में आप सभी विधाओं में बचपन से आज तक सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों का प्रकाशन सहित अप्रकाशित साहित्य में १५ पांडुलिपियां तैयार हैं। अन्य पुरस्कारों के साथ आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान द्वारा ‘अज्ञेय’ पुरस्कार दिया गया है। आकाशवाणी (दिल्ली)से ध्वन्यात्मक नाटकों में ध्वनि प्रसारण और १९६९ तथा २०१० में नाटक में अभिनय,सितार व कथक की मंच प्रस्तुति दी है। अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षण और प्राचार्या भी रही हैं। आप मुज़फ्फरनगर में निवासी हैं|
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अंतर्मन को छूती प्रेरक रचना ,बधाई दीदी माँ ।